लो आ गया वसन्त
दिग दिगंत में घुल रही, केसर रंग सुगन्ध

धरा उतारे आरता, प्रेमी भए वसन्त
मां वाणी ने धर दिया, सर पर सबके हाथ
तभी मुखर है लेखनी, जिसने पकड़ी आज
आमों की डाली पर भंवरे, गुन गुन गीत सुनाते हैं
कोयल की पंचम को सुनकर, कामदेव मुस्काते हैं
चंचल तितली डाल डाल पर, पुष्पों को चुम्बन देती
मस्त धरा भी सरसों की, वासन्ती चादर से ढकती
—–कात्यायनी
जी हां, अभी 14 फरवरी को मां वाणी की अर्चना के साथ ही स्वागत किया ऋतुराज वसन्त का वसन्त पंचमी के रूप में… इस अवसर पर कुछ रचनाकार मित्रों की बड़ी मनोहारी रचनाएँ प्राप्त हुईं जो आज इस संकलन में हम प्रकाशित कर रहे हैं… वरिष्ठ कवयित्री डा रमा सिंह की निम्न पंक्तियों के साथ…
1.
बुद्धि, विद्या, ज्ञान का, सिर पर रखती हाथ ।

कलम सदा उठती तभी, जब माँ देती साथ ।।
पीली चादर ओढ़कर, आए राज वसन्त ।
कामरूप धरती हुई, रतिमय दिशा दिगन्त ।।
बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं!
डा रमा सिंह🙏🙏🙏
2.
लेकिन वसन्त के राग की आलाप तानें आगे बढ़ाएं उससे पहले “वेलेंटाइन डे” के सन्दर्भ में पुलवामा के अमर शहीदों को श्रद्धानत भाव से नमन करते हुए रूबी शोम की विचारों को झकझोरने वाली एक रचना…
वैलेंटाइन डे याद रहा
पुलवामा तुम भूल गए
देश की खातिर जो

शहीद हुए
तुम वो कुर्बानी भूल गए
देश धर्म पर मिटने वाली
तुम वो 44 जवानी भूल गए
तुम को भी क्या ये याद नहीं
14 फरवरी 19 का दिन
पुलवामा पर हमला करते
वो कायर आतंकी थे
सीने पर जो गोली खाई
भारत मां के लाल, सिपाही थे
रक्त रंजित थी काया उनकी
चेहरे से लहू टपकता था
घायल होकर भी उनके
सीने में आग दहकता था
वो कुर्बानी शहीदों की
तुम वो शहादत भूल गए
वैलेंटाइन का लाल गुलाब तो याद रहा
तुम खून से लथपथ वीरों
को भूल गए
वैलेंटाइन डे याद रहा
पुलवामा तुम भूल गए।
रूबी शोम
3.
शिशिर बीता, बसंत ऋतु आई
तन- मन ने
उपवन – चितवन ने
ठिठुरन छोड़ी,
ली अंगड़ाई !

कोहरे का आवरण हटा
झांक रही प्रकृति छटा !
माँ सरस्वती के स्वागत में
कोकिल ने पंचम तान सुनाई !
सुनकर मीठे स्वर अनुरागी
देखो वह आम्रमंजरी जागी !
‘श्रीहरि’ को आमंत्रित करती
मधुमास की पीतवर्ण तरुणाई,
शिशिर बीता, बसंत ऋतु आई !
डा नीलम वर्मा
4.
बासन्ती रंग, ऊषा के छोर
से बिखर रहा कण कण में आज
सूरज की प्रियतमा ओढ़ चुनर
बिखराती किरणें साज साज ।

बज उठे सप्त स्वर दिशा दिशा
पावनी हवा में है संगीत
झंकृत वीणा की सुर लहरी
में कौन गा रहा मधुर गीत?
कोमल आलोक की धारा में
सतरंगी कण कण निखर गए
कुछ शिशिर बिंदु वाष्पित होकर
चंदन बन हवा में बिखर गए।
उस तरफ नाचता है मयूर
इस तरफ थिरकता श्वेत हंस
वेदों के मंत्र वाणी बन कर
गूंजते हैं चहुं दिस अंश अंश।
निर्झरा बह रही स्नेह धार
मां की आभा है सृष्टि व्याप्त
यह पुण्य पंचमी, है बसन्त
पुलकित है दिन पुलकित है रात
वेदों का ज्ञान, वीणा के स्वर
गति, ताल, छंद और अलंकार
भाषा, अभिलाषा की देवी!
हे सरस्वती! तुम्हें नमस्कार!
प्राणेंद्र नाथ मिश्र
5.
लो सखी आ गया बसन्त
खोला जो कपाट खिड़की का
भर गई कमरे में सुगन्ध

मंद मंद बयार चली
पिया ने किया आलिंगन।
लो सखी आ गया बसन्त
खगकुल उड़ चले अपना
चुग्गा खाने को
उधर बासन्ती सुगन्ध बयार ने भी
निवेदन किया अपने पास आने को।
लो देखो उड़ चली तितलियाँ भी
पुष्प वृंदा का रसपान करने को।
लो सखी आ गया फिर से बसन्त।
हर अंकुर ने ली अंगड़ाई स्वागत
करने का बसन्त को।
आमों की डाल पर बैठी कोयलिया
चित्कार उठी ,अब करो न देरी
देखो सखी आ गया बसन्त।
जब रोम-रोम खिल उठे
उर में प्रेम के भाव जगे
देखकर निज साजन को सजनी
कुछ गुनगुना उठे तभी समझो
लो सखी आ गया बसन्त
रेखा अस्थाना
6.
सर्दी की ठिठुरन से
शीत भरी सिहरन से
पाने निजात देखो आया बसंत
खेतों में झूमे सरसों की डाली

कोयलिया बोले बागों में काली
झूम झूम जाए आम की अमराई
चूम चूम जाए बदन हवा की अंगड़ाई
फागुन के आने का संदेशा बसंत
माघ के महीने में आता बसंत
बागों में फूलों का खिलना बसंत
खेतों में नई फसलों का, आना बसंत
सजी है आज धरती, करके श्रंगार
प्रकृति का कैसा देखो, अनुपम उपहार
झूम झूम आया ऋतु राज बसंत
बरसे बदरिया नृत्य करे मोर
मन के किसी कोने में, होने लगा शोर
चहुं ओर उत्सव है आया बसंत
धरा पर है होता, आगमन शारदे का
करें हम पूजन वंदन, मां शारदे का
वरदान हमको, देना ए माता
अंधेरा घना है,मिटा दो ए माता
पीले वस्त्र पीले रंग है पीला सब वातावरण
करती है आज धरा ऋतु राज का वरण
तरुवर से पात झरे, मधुवन में फूल खिले
हरियाली लेके आज फिर आया बसंत
सर्दी से ठिठुरन से
शीत भरी सिहरन से
पाने निजात देखो आया बसंत।
रूबी शोम
7.
खेत खलिहान डगर डगर पे, छाया बसन्त हैं जम के
मौसम हैं ये सुहाना, संग गाओ गीत उमंग के
सरसों इठला रही हैं और अमुवा की डाल पे मैना

धरती हुई बासंती, लगे पहनें सुनहरा गहना
त्योहारों की है रौनक, सजना हैं और संवरना
ऋतुराज दे निमंत्रण, आयेगा फाग महीना
सूरज की सुनहरी किरणें, पड़ती मचल मचल के
खेत खलिहान डगर पे, छाया बसन्त हैं जम के
हुई शीत ऋतु समापन, माघ पंचमी हैं आयी
माँ शारदे का पूजन, हैं बुद्धि विवेक दायी
पुष्पद को मिल रही हैं, नये कोपलों की दौलत
बौरों से लद गए हैं, आम्र व्रक्ष हुए हैं मादक
सब कुछ नया नया सा, देख आत्मा मुस्करायी
हर ओर हैं हरियाली, रंगत धरा पे छाई
वसुधा भी जँच रही हैं, चूनर नई पहन के
कोमल खिली हैं कलियां, उपवन में पुष्प महकें
खेत खलिहान डगर पे, छाया बसन्त हैं जम के
मौसम हैं ये सुहाना, संग गाओ गीत उमंग के
नीरज सक्सेना
8.
अमृत रस लिए आया है बसंत
चहुं और फैलाने स्वर्णिम खुशहाली,
विदा हो गया शीत का कोहरा और पतझड़,
आए हैं ऋतुराज राग रंग लेकर

उर स्पंदन में भरती प्रकृति की छटा निराली।
क्षितिज पर चमक आया है सूरज
लिए किरणें उम्मीदों की
गदराया धरती का यौवन यू जैसे
चले कामिनी इठलाती लिए गगरिया खुशियों की।
अमृत रस लिए आया है बसंत
पेड़ों ने जब डाला हरियाली का पालना
तो झूम उठी धरा ये मतवारी,
मीठे मीठे गीत सुनाती कोयलिया
फुदक रही देखो अंबुआ की डारी डारी,
मीठी मीठी धूप भी उतर आई है अंगना,
तो झूला झुलाने भी आ गई है मदमस्त पवन,
उदास हृदय में छाई अब सृजन की फुहार
आया बसंत लिए प्यार भरी विविध गंध और विपुल रंग।
अमृत रस लिए आया है बसंत
नवजात कोपलें फूट पड़ी है सुखी शाखाओं में
देखो तो जरा चटकीले हरे रंग में मुस्काती
हर टहनी पर झूल रही है बाकी चितवन लिए,
कुछ खिली अधखिली सुकुमारी कलियां लज़्जाती।
अमले तास पलाश जूही चंपा चमेली
सरसों के महकते फूलों की सजी है जो बारात,
और गुलाबी फूलों की महकती रूमानी खुशबू,
आहत हृदय को देती है प्रेम की प्यारी सी सौगातl
छाई है हवाओं में ये उल्लास की गंन्ध
जो चित में बजा रही है उमंग की मृदंग,
हर जीवन दहक रहा अब गुलमोहर सा,
उड़ता जा रहा यह मन उन्मुक्त स्वच्छंद।
अमृत रस लिए आया है बसंत
मन के मधुबन में जो मेरे थी मौन उदासी पतझड़ की,
सांकल खोल हृदय के भर ली खुशबू मैने वो बासन्ती सी,
दहकते फूलों की रंगत लेकर अपने गीतों की लड़ियां पिरोकर,
बनाऊंगी मैं एक सुंदर सी बंधनवार,
सजाऊंगी हृदय का आंगन चौबारा,
लगाऊंगी चौखट पे सुंदर सी बंधनवार,
रखूंगी भाव भरा एक कलश, मैं अपने हृदय के द्वार,
करूंगी मैं यूं ही तेरा इंतजार, ए बसंतl
अमृत रस लिए आया है बसंतl
ओ प्रियतम बसंत, हर वर्ष यूं ही आना,
करते हो जैसे धरा को सुशोभित,
मेरे जीवन को भी ऐसे ही सजाना,
और चाहती हूं मैं बस इतना
आत्मा को मेरी ,अपना वसन बासन्ति दे जाना
अमृत रस लिए आया है बसंत
मधु रुस्तगी
9.
आज बसन्त ने मेरे द्वार पर, दस्तक लगाई
नई कोपलें खिल उठी, हवा ने ली अंगड़ाई

मस्त बयार ने बुझे दिलों में आस जगाई
शीत लहर को विदा देती, हवा फागुनी आई
फूलों की महक ने ताजगी चहुं ओर फैलाई
रंग-बिरंगे फूलों की छटा मेरे मन को भाई
देख जन जन का हर्ष, बासंती हवा मुस्काई
हवा के शीतल झोंकों ने, कैसी ठंडक पहुंचाई
बसंत तो बसंत है, श्रेष्ठ ऋतु कहलाई
जीवन रहे बसंत सा, गुहार हमने लगाई।
सुमन माहेश्वरी
10.
सखी री फिर आया बसंत
नव पल्लव पा
डाली डाली झूम रही

कुहके कोयल
पी आए है
पी आए है
गई शरद की ठंडी पवन अब
मन मेंउठी हिलोर फिर से
देखो देखो नव पल्लव भी
झांक रहे है
ओट डाल की
नहीं कोई अवरोध
झूमे संग फूलों के
होके अब मद मस्त
भँवरे करते है गुंजार
चिड़िया भी अब फुदक रही है
गाती गीत भर उल्लास
आओ सखी अब हम मनाये
बसंत मन भावन का त्योहार
बानू बंसल
11.
और अब अन्त में कुछ हमारी स्वयं की लेखनी से🙂🙏💐
वसन्त का राग मनोहर
मन वीणा पर गाते जाते
आज पवन मस्ती में बहता
कलियों संग अठखेली करता

और हवा की देख मसखरी
हर पीला पत्ता मुस्काता
रूपसि बरखा भी मेघों के
मध्य खड़ी निज केश झटकती
मोती जैसी बूंदों का जल
हर घर आंगन में टपकाती
कुछ तो शीत लहर की ठण्डक
कुछ रिमझिम बूंदों की सिहरन
गोरी के मन नई उमंगे
मचल मचल कर हैं उमगातीं
किन्तु तभी अरूणिम उषा को
आगे करके भोर है आती
और प्रिया को मेघों की वह
रश्मिकरों से दूर भगाती
वातायन के पट खुलते ही
भोर सुहानी भीतर तकती
हिम शिखरों पर कलश धूप का
किरणें निज कर लेकर आतीं
धीरे धीरे धूप बिखरती
तितली पुष्पों पर मंडरातीं
कुसुमों के अधरों पर चुम्बन
जड़कर, मधुरस ले उड़ जातीं
और उधर भंवरे भी देखो
सुमनों से कुछ छन्द चुराते
और हरित पत्रों पर वासन्ती
कुछ गीत तभी रच जाते
गोरैया निज नयनों में है
नीलम जैसे नभ को भरती
और क्षितिज से मिलन हेतु वह
दूर गगन में उड़ती जाती
मलय समीरण भी नदिया के
जल में कुछ हलचल कर देता
और गोरी के नयनों में भी
प्रेम के अनगिन रंग भर देता
आम्र कुँज में कामदेव का
उसी समय नर्तन हो जाता
बौराया वसन्त तब प्रेमी
जन पर है निज बाण चलाता
धीरे धीरे धूप भास्कर
संग गगन के पीछे छिपती
और सिंदूरी संझा निज पग
हौले से निशि के घर धरती
झीलों के दर्पण में चन्दा
जैसा मुखड़ा रजनी तकती
और निशिकर के प्रेम पाश में
बंधकर सुध बुध भूली रहती
पर अनंग के बाणों से बिंध
प्रेमीजन बौराए जाते
और वसन्त का राग मनोहर
मन वीणा पर गाते जाते
—–कात्यायनी























liver cells. While a small amount of fat in the liver is normal, excessive fat build-up can lead to inflammation and liver damage. Fatty liver can be categorized into two main types: alcoholic fatty liver disease (AFLD) and non-alcoholic fatty liver disease (NAFLD).

























