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नश्वर जग का सार राम हैं

22 जनवरी को भगवान श्री राम की जन्मस्थली अयोध्या में भगवान श्री राम मन्दिर में प्रतिमा का प्राण प्रतिष्ठा समारोह सम्पन्न हुआ | जो हम सभी देशवासियों के लिए गर्व और हर्ष का विषय है | इस अवसर पर WOW India के भी कुछ सदस्यों ने अपने मनोभाव प्रस्तुत किए – जो प्रस्तुत हैं “

नश्वर जग का सार राम हैं” शीर्षक से… रचनाएँ प्रकाशित करें उससे पूर्व कुछ बातें – सबसे पहले तो हमें यह समझना होगा… और इस पर विश्वास भी करना होगा… कि भगवान श्री राम केवल किसी सम्प्रदाय विशेष की आस्था मात्र का विषय ही नहीं हैं… अपितु एक स्वस्थ… सन्तुलित और मर्यादित जीवन शैली का आदर्श भी हैं… यही कारण है वे इस राष्ट्र के ही नहीं… वरन विश्व के कण कण में समाए हुए हैं… मन्दिरों में भगवान श्री राम सीता की मूर्ति केवल एक प्रस्तर प्रतिमा पात्र नहीं है… बल्कि वास्तव में प्रतीक हैं भगवान श्री राम के महान आदर्शों के… क्योंकि मर्यादा पुरुषोत्तम यों ही नहीं कहलाते हैं… तो, कुछ भाव सुमन भगवान श्री राम को नमन करते हुए…

 

सर्वप्रथम मधु रुस्तगी की रचना जो उन्होंने 21 जनवरी को भगवान श्री राम की प्रतिमा के प्राण प्रतिष्ठा से पहले दिन लिखी थी…

सब तरफ उल्लास है
और है खुशियों के पल
शोर है उत्सव का हुआ,
मची सब के मन मे हलचल।
है बज उठा शंखनाद अयोध्या में
श्री राम जी के आने का
मिलन होगा और होगा दर्शन
पतित पावन श्री राम का।
आप के हैं प्रभु राम,आप के लिए
सज रहे हैं आप के ही द्वारा।
कल होगी स्थापना उनकी
बहने दो आंखों से पानी खारा।
हर दिशा शोभायमान है हो उठी
ये पवन भी प्रफुल्लित हो उठी
हर जन के तन मन मे
मधुर ध्वनियां गुंजित हो उठी।
भाव जो हमने संचित किए थे
आंसुओं से भीगे हृदयों में
छलकने दो भरी गगरी को नैनों मे।
कल जब भोर होगी,तो वो होगी श्रीराम की
जब ढलेगी शाम तो, वो भी होगी श्रीराम की।
युद्ध था छिड़ा पांच सदियों से हमारे राम का
बिगुल बज उठा है जीत का,स्वागतहै श्रीराम का
आज सज रही अयोध्या और भारत है सज रहा
रामलला विराजेंगें,हर मंदिर में शंख है बज रहा।
उठो,करो स्वागत सभी,प्रभु श्रीराम का
अयोध्या बनी है स्वर्ग,पावन हुई भारत की ये धरा

अब एक रचना डा दिनेश शर्मा जी की लिखी हुई…

राम !
औरों को शाप मुक्त करके भी
स्वयम रहे अभिशप्त
कभी दूसरों के क्रोध से संतप्त
तो कभी अपनो से त्रस्त !!

राम !
अकारण नही हुआ वनवास तुम्हे
और न ही पत्नी हरण !!
न होता –
तो कैसे बनते
सहनशीलता के उत्कर्ष
युग पुरुष !

राम !
हर युग में
कोई तो विष पीता है
आक्रोश और अपमान का
शिव होने को !

राम!
अकारण भग्न नही हुआ
तुम्हारा जन्मस्थल –
मूर्ख आक्रांताओं से !
न होता
तो कैसे विराट बनते
इक्कीसवीं सदी के
हर भारतीय मन में
पुनः युगनायक बनकर !!

सब में राम – डा रश्मि चौबे…
मैं भारत की वासी हूं, रामराज्य ही चाहूंगी ,
दैहिक ,दैविक ,भौतिक ताप मिटे, ऐसा देश में चाहूंगी ।
पीड़ा में हरेराम कहूं तो ,दवाई रामबाण मिले ।
राम भरोसे रहकर मैं, राम जाने ही कहती हूं ।
दुख में हे राम कहूं तो, राम ही मेरी पीड़ा हरे।
शपथ में राम दुहाई दे, दुश्मन से सच कहलवाती हूं ।
ऐसा कोई काम ना करूं कि,लज्जा से हाय राम कहूं ।
ऐसा कोई अशुभ ना हो कि,अरे राम- राम कहूं ।
हिंदी में अभिव्यक्ति करूं तो, श्री राम पग- पग पर खड़े।
निर्बल के वन के प्रभु ,राम सबल होने को कहें।
अंत में राम नाम सत्य सुनकर, परमधाम पहुँच जाऊं ।
ऐसे सियाराम दया के सागर, करुणा सिंधु को मैं पाऊं।

राम – मीना कुंडलिया…
राम राम जय राम जय श्री राम!!
सांस सांस में बसे हैं राम
कण कण में हैं समाहित राम !!
मेरे अंध तमस में राम जग के उजियारे में राम!!
आस्था हैं वरदान हैं राम आदर्श और प्रतिमान हैं राम!!
शबरी के बेरों में राम केवट की नैय्या में राम!!
दशरथ राज दुलारे राम कौशल्या के प्यारे राम!!
हनुमत के हैं बस राम सबके तारणहारे राम !!
प्रेम सत्य और दया हैं राम न्याय भक्ति दुखहर्ता राम!!
अविचल और अविनाशी हैं राम
राम राम बस राम ही राम
राम राम जय राम जय श्री राम!!

 

जय श्री राम – गुँजन खण्डेलवाल…
जय राम आपकी
क्योंकि सरल नहीं है राम होना
ऐश्वर्यवान कुल में जन्म लेकर ऋषि मुनियों की रक्षा करना
बड़े भ्राता होने का धर्म निभा, छोटे के समक्ष उदाहरण हो जाना
अपने पराक्रम से दशानन को लज्जित कर सीता का वरण करना
कितनी सरलता से त्याग दिया राज्य पर अधिकार
सौंप कर भरत को, वन गमन किया वैदेही सहित निर्विकार
पिता की आज्ञा पर भृकुटी भी न चढ़ाई
शीश झुकाकर आदर्श पुत्र की भूमिका निभाई
विमाता की असंगत मांग पर प्रश्न भी न किए
चौदह वर्षों के लिए राज सुख क्षण भर में त्याग दिए
केवट और शबरी को सम्मान दिया
प्रेम ही सर्वश्रेष्ठ है ज्ञान दिया
मित्रता का संबंध रक्त से भी बड़ा है, समझाया
विभीषण और सुग्रीव को व्यवहार से अपनाया
अहंकार और पर स्त्री की कामना अधर्म है
पशु पक्षी सेवा सभी का धर्म है
लंकेश का वध कर बता दिया
जटायु की सेवा से जता दिया
कितना कठिन होगा सीता की अग्नि परीक्षा लेना
और निष्ठुर बन उस प्राण प्रिया को वन भेज देना
महल में रहकर भी ऋषि सा जीवन बिताना
सांसारिक सुखों के मध्य अविचलित योगी हो जाना
राम, वीर है
राम, गंभीर है
सृष्टि में राम विचारक
अहिल्या के उद्धारक
राम, धैर्यवान है
लोक कल्याण के प्रतिमान है
त्याग की पराकाष्ठा
संपूर्ण जगत की आस्था
राम, संस्कार और शौर्य में सर्वोत्तम
राम, आप ही मर्यादा पुरुषोत्तम

श्री राम – रूबी शोम…

अयोध्या धाम हो पावन
यहां प्रभु राम आयेंगे
बिछाओ फूल राहों में
प्रभु के चरण पखारेंगे
सजाओ घर और द्वार
मेरे प्रभु राम आयेंगे
निराशा मिट गई सारी
खुशियों के पल आयेंगे
आज दिन महीने बरसों के बाद
राम अवतार आयेंगे
दीवाली सा जगमगाता है
आज शहर ये सारा
साथ राम सीता संग लखन आयेंगे
ये कैसा संयोग है प्यारा
घर घर दीप जले हैं और
मंदिर में आरती होती
खुशी से हैं सभी पागल
न सारी रात सोते हैं
हुई है आरज़ू पूरी
सभी के दिल मुस्कुराते हैं
चलो मिलकर मचाएं धूम
अवध के राम आयेंगे
धरा पर है महा उत्सव
श्री राजा राम आयेंगे
गाओ भजन और कीर्तन
दशरथ के लाल आयेंगे
पापों से मिले मुक्ति
हृदय में हो राम की भक्ति
कवि की कल्पनाओं में
राम के भाव आयेंगे
बरसों से प्यासी हैं ये आंखें
पाकर प्रभु राम के दर्शन
ये नैना तर जायेंगे
अयोध्या धाम हो पावन
यहां प्रभु राम आयेंगे।

रामराज्य – संगीत गुप्ता…
राम राज्य जब चाहो तब है
सिर्फ हम सब की सोच का फेर है

हम देखे सिर्फ अच्छाई तो दिखेगा सतयुग
गर देखे सिर्फ बुराई तो बन जाए कलयुग

राम राज्य में भी हुआ था
पुत्र मोह में सत्ता का लालच
कलयुग में भी भाई के प्यार से ऊपर
हो जाती है धन दौलत

राम राज्य में भी मां बनी सौतेली
दिया देश निकाला
पिता बना मूक दर्शक
देख रहा नियति का खेल निराला

राम के होते भी हुआ सीता का हरण
कलयुग में भी खड़ा है रावण करने सीता का हरण

उस युग में भी सीता हुई थी अपमानित
अग्नि परीक्षा देकर साबित किया अपना स्तीत्व
इस युग में भी बेटियां होती है अपमानित

राम राज्य लाना है गर
पहले समाज की कुरीतिया हो दूर

बेटी और बेटे में ना हो कोई भेद
समान अधिकार हो स्त्री और पुरुष में
हो आपस में भाईचारा ना हो कोई जाति भेद

सोच बदलेगी तो राम भी होंगे घर घर
बदलेगा समाज तो रामराज्य भी होगा

और अब अपनी कुछ पंक्तियों के साथ इस संकलन का समापन…

नश्वर जग का सार राम हैं
बहुत कठिन है राम के पथ पर
चलना, सहना कष्ट अनेकों
जगती को विश्राम कराने
हित जो जगते, वही राम हैं

कष्टों का अवसान राम हैं
ज्ञान और विज्ञान राम हैं
शोधों का हैं सत्य राम ही
जीवन में आराम राम हैं

राम दया हैं, राम त्याग हैं
हर युग के आदर्श राम हैं
राम जीव में विद्यमान हैं
तो जग के कर्ता भी राम हैं

राम साधना के साधन हैं
राम साधकों के साधक हैं
राम ध्यान के संवाहक हैं
केन्द्र ध्यान का एक राम हैं

हर प्राणी के नयनों के
अभिराम राम, विश्राम राम हैं
सभी द्वंद्व और संघर्षों के
अन्तिम पूर्ण विराम राम हैं

राम आदि हैं, राम अन्त हैं
भूत भविष्यत वर्तमान हैं
जीवन का उत्साह राम हैं
ऐसा मंजुल नाम राम हैं

रमता जो हर योगी में
हर प्रेमी, विरह वियोगी में
हर श्वास और नि:श्वासों में
ऐसा रंजक नाम राम हैं

राम मार्ग हैं, राम लक्ष्य हैं
हर मन के आराध्य राम हैं
राम ही नेता, राम प्रणेता
प्राणवाक्षर का नाद राम हैं

सूरज चांद सितारों में वह
हर घर, हर गलियारे में वह
अश्रु प्रवाहों में निर्बल के
न्याय का हर आधार राम हैं

वह बसे हरेक मां के हाय में
दें जीवन प्रस्तर प्रतिमा को
शबरी के झूठे बेरों और
हर नारी का अभिमान राम हैं

काकभूषुण्ड की वाणी में
वह शंकर औघड़दानी में
हम उसको यहां वहां ढूंढें, पर
आत्मा की पहचान राम हैं

नियम राम हैं, धरम राम हैं
जप तप का संयम भी राम हैं
शौर्य राम हैं, तो स्नेही जन
के मन का अनुराग राम हैं

नदिया की कल कल धारा में
सागर से उठती ज्वाला में
उच्च हिमाच्छादित शिखरों में
नश्वर जग का सार राम हैं
—–कात्यायनी