International women’s day award ceremony – organized by WOW India & Delhi Gynaecologist Forum on 8th March 2020 in IPEX Bhavan, Patparganj, Delhi. A soulful speech by Didi Ma Sadhwi Ritambhara Ji on this occasion… Must watch…
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International women’s day award ceremony – organized by WOW India & Delhi Gynaecologist Forum on 8th March 2020 in IPEX Bhavan, Patparganj, Delhi. A soulful speech by Didi Ma Sadhwi Ritambhara Ji on this occasion… Must watch…
Report of Women’s Day Program
आठ मार्च को अईपैक्स भवन पटपरगंज में WOW India और DGF के द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर रंगारंग कार्यक्रम के बीच Award Ceremony का आयोजन किया गया | कार्यक्रम का विषय था महिलाओं की सुरक्षा और इसी विषय पर एक छोटे से संवाद के साथ WOW India के सदस्यों ने कार्यक्रम का आरम्भ किया |
WOW India की सेक्रेटरी जनरल डॉ पूर्णिमा शर्मा के कॉन्सेप्ट स्क्रिप्ट को WOW India की कल्चरल सेक्रेटरी लीना जैन के निर्देशन में प्रेसीडेंट डॉ एस लक्ष्मी देवी के साथ मिलकर बानू बंसल, डॉ रूबी बंसल, डॉ प्रिया कपूर, डॉ दीपिका कोहली, डॉ रश्मि जैन, डॉ इंदु त्यागी, सरिता रस्तोगी और सुषमा अग्रवाल ने बड़े अच्छे से पूर्ण ऊर्जा के साथ प्रस्तुत किया | उसके बाद WOW India की Chairperson डॉ शारदा जैन ने महिला सशक्तीकरण के विषय में अपने विचार व्यक्त किये और WOW India की President डॉ एस लक्ष्मी देवी ने WOW India की आरम्भ से लेकर अभी तक की यात्रा के विषय में दर्शकों को अवगत कराया | कार्यक्रम का सफल संचालन लीना जैन ने किया |
कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण था परम पूज्या दीदी माँ साध्वी ऋतम्भरा जी को सुनना | दीदी माँ ने वैदिक काल से लेकर रामायण महाभारत काल से होते हुए आधुनिक काल तक की नारियों की यात्रा के सारगर्भित वर्णन के साथ ही महिलाओं को सुझाव भी दिया कि हमें अपने घर में बच्चों को संस्कारित करने की आवश्यकता है ताकि महिलाओं के साथ दिन प्रतिदिन होते रहने वाले अपराधों में कभी तो कमी आए | दीदी माँ का कहना था कि सदा लड़कियों को ही क्यों टोका जाता है उनके वस्त्रों के लिए, उनके कार्य के लिए ? इसके बजाए आवश्यकता है हमें अपने परिवारों में बचपन से ही संस्कारों की डालने की ताकि ऐसी कोई समस्या ही उत्पन्न न हो, और एक माँ इस कार्य को जितनी दृढ़ता तथा भावुकता के साथ कर सकती है उतनी दृढ़ता और भावुकता के साथ कोई अन्य इस कार्य को नहीं कर सकता |
कार्यक्रम में जयपुर घराने की विश्व प्रसिद्ध कत्थक नृत्यांगना सुश्री प्रेरणा श्रीमाली को शास्त्रीय नृत्य के क्षेत्र में उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए Women’s Day Legendary Award से सम्मानित किया गया | संगीत जैसी कलाओं के क्षेत्र में आज के युग में भी संगीत प्रशिक्षण के महत्त्वपूर्ण अंग “गुरु-शिष्य परम्परा” को जीवित बनाए रखने वाले कुछ प्रसिद्ध गुरुओं में प्रेरणा जी की गणना की जाती है | इस अवसर पर बोलते हुए प्रेरणा जी का भी यही प्रश्न था कि विश्व की आधी आबादी यानी महिलाओं को पुरुषों से कम करके क्यों आँका जाता है ? अभी भी क्यों बहुत से स्थानों पर लड़कियों के शाम के बाद घर से बाहर निकलने पर रोक लगा दी जाती है ? और यदि उन्हें जाना भी हो भाई साथ में जाएगा – भले ही वह भाई उनसे दस बरस छोटा ही क्यों न हो ? वास्तव में ये ऐसे ज्वलन्त प्रश्न हैं कि इनके उत्तर तो हम सबको मिलकर खोजने ही होंगे |
इसके अतिरिक्त महिलाओं के स्वास्थ्य के क्षेत्र में सराहनीय योगदान के लिए अत्यन्त योग्य डॉ दीप्ति नाभ को Excellence Award से सम्मानित किया गया | डॉ नाभ Senior Consultant Obstetrician & Gynaecologist & Infertility Expert हैं |
सुश्री योगिता भयाना को समाज सेवा के क्षेत्र में उनके द्वारा किया जा रहे महिलाओं से सम्बन्धित कार्यों के लिए – विशेष रूप से बलात्कार से पीड़ित महिलाओं के लिए जो कार्य वे कर रही हैं उसके लिए – Excellence Award से सम्मानित किया गया | सुश्री भयाना ने हाल ही में UN में अपील की है कि निर्भया काण्ड के चारों दरिन्दों को जिस दिन फाँसी पर लटकाया जाएगा उस दिन को अन्तर्राष्ट्रीय महिला सुरक्षा दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा की जाए |
संगीत और कला के क्षेत्र में Excellence Award दिया गया प्रसिद्ध उड़ीसी नृत्यांगना आम्रपाली गुप्ता जी को जिन्हें नृत्य की विधा परम्परागत रूप में विरासत में अपनी पूज्या माता जी से प्राप्त हुई |
इनके अतिरिक्त कुछ Appreciation Awards भी दिए गए | जिनमें: डॉ मीनाक्षी शर्मा को स्वास्थ्य के क्षेत्र में, योजना विहार शाखा की श्रीमती बिमलेश अग्रवाल, इन्द्रप्रस्थ शाखा की श्रीमती सुनीता अरोड़ा और अईपैक्स ब्रांच की श्रीमती वन्दना वर्मा को समाज सेवा के क्षेत्र में, सूर्य नगर ब्रांच की श्रीमती रेखा अस्थाना को शिक्षा के क्षेत्र में तथा इन्द्रप्रस्थ ब्रांच की ही श्रीमती राजेश्वरी भार्गव को संगीत और नृत्य के क्षेत्र में Appreciation Awards से सम्मानित किया गया | सूर्य नगर ब्रांच की श्रीमती सविता कृपलानी और इन्द्रप्रस्थ ब्रांच की Study Seven seas नाम से विदेशों में मेडिकल के पढ़ाई के इच्छुक विद्यार्थियों के लिए Consultancy Services देने वाली श्रीमती पारुल शर्मा को Best Coordinator के रूप में सम्मानित किया गया | सूर्यनगर तथा इन्द्रप्रस्थ शाखाओं को विभिन्न क्षेत्रों में बेस्ट ब्रांच का अवार्ड दिया गया |
सभी ब्रान्चेज़ की सदस्यों ने तथा Delhi Gynaecologist Forum की मेम्बर्स ने रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किये जिन्हें देखकर खचाखच भरे हॉल में दर्शकगण भी झूमे बिना न रह सके | सबसे आकर्षक कार्यक्रम रहा आम्रपाली गुप्ता जी की दो शिष्याओं अनुप्रिया शर्मा और साँवरी सिंह के शास्त्रीय नृत्य जिनमें आम्रपाली जी के ही नृत्य की झलक देखने को मिली |
खाना और चाट तो स्वाद थी ही जिसका सभी ने लुत्फ़ उठाया | कुल मिलाकर कार्यक्रम बेहद उल्लासमय, उत्साहमय और सफल रहा |
डॉ पूर्णिमा शर्मा
Happy Women’s Day
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की सभी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ
सारी की सारी प्रकृति ही नारीरूपा है – अपने भीतर अनेकों रहस्य समेटे – शक्ति के अनेकों स्रोत समेटे – जिनसे मानवमात्र प्रेरणा प्राप्त करता है… और जब सारी प्रकृति ही
शक्तिरूपा है तो भला नारी किस प्रकार दुर्बल या अबला हो सकती है ?
आज की नारी शारीरिक, मानसिक, अध्यात्मिक और आर्थिक हर स्तर पर पूर्ण रूप से सशक्त और स्वावलम्बी है और इस सबके लिए उसे न तो पुरुष पर निर्भर रहने की आवश्यकता है न ही वह किसी रूप में पुरुष से कमतर है |
पुरुष – पिता के रूप में नारी का अभिभावक भी है और गुरु भी, भाई के रूप में उसका मित्र भी है और पति के रूप में उसका सहयोगी भी – लेकिन किसी भी रूप में नारी को अपने अधीन मानना पुरुष के अहंकार का द्योतक है | हम अपने बच्चों को बचपन से ही नारी का सम्मान करना सिखाएँ चाहे सम्बन्ध कोई भी हो… पुरुष को शक्ति की सामर्थ्य और स्वतन्त्रता का सम्मान करना चाहिए…
देखा जाए तो नारी सेवा और त्याग का जीता जागता उदाहरण है, इसलिए उसे अपने सम्मान और अधिकारों की किसी से भीख माँगने की आवश्यकता नहीं…
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की सभी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ – इस आशा और विश्वास के साथ कि हम अपने महत्त्व और प्रतिभाओं को समझकर परिवार, समाज और देश के हित में उनका सदुपयोग करेंगी…
इसी कामना के साथ सभी को आज का शुभ प्रभात…
मुझमें है आदि, अन्त भी मैं, मैं ही जग के कण कण में हूँ |
है बीज सृष्टि का मुझमें ही, हर एक रूप में मैं ही हूँ ||
मैं अन्तरिक्ष सी हूँ विशाल, तो धरती सी स्थिर भी हूँ |
सागर सी गहरी हूँ, तो वसुधा का आँचल भी मैं ही हूँ ||
मुझमें है दीपक का प्रकाश, सूरज की दाहकता भी है |
चन्दा की शीतलता मुझमें, रातों की नीरवता भी है ||
मैं ही अँधियारा जग ज्योतित करने हित खुद को दहकाती |
और मैं ही मलय समीर बनी सारे जग को महका जाती ||
मुझमें नदिया सा है प्रवाह, मैंने न कभी रुकना जाना |
तुम जितना भी प्रयास कर लो, मैंने न कभी झुकना जाना ||
मैं सदा नई चुनती राहें, और एकाकी बढ़ती जाती |
और अपने बल से राहों के सारे अवरोध गिरा जाती ||
मुझमें है बल विश्वासों का, स्नेहों का और उल्लासों का |
मैं धरा गगन को साथ लिये आशा के पुष्प खिला जाती ||
डॉ पूर्णिमा शर्मा
Greetings from our chairperson
friends..,
Take one minute.. & spell your USP
Your special point..
We don’t stop dreaming and exploring because we grow old.
I strongly believe ..We grow old because we stop dreaming and exploring… How to help others, my colleagues, my friends
My fundas are 3
Remain student alway. Curiosity to learn should never die… Otherwise u will atrophy fast.
put your 100 percent.enjoy what u do. It should be calling, passion.
Give helping hand to younstees & colleagues… & leave ????? a legacy… Jo mahakti rahe..
Aisee chaap jo mitaye se bhee na mite
? my blessings ??❤ & pranam on this great day
Sharda
Recipe of Gujhiya
गुझिया बनाने की विधि
आज आमलकी एकादशी है – जिसे हम सभी रंग की एकादशी के नाम से जानते हैं – सर्व प्रथम सभी को रंग की एकादशी की हार्दिक शुभकामनाएँ…
यों तो होली का त्यौहार फाल्गुन शुक्ल पञ्चमी यानी रंग पञ्चमी से ही आरम्भ हो जाता है, लेकिन रंग की एकादशी से तो जैसे होली की मस्ती अपने पूर्ण यौवन पर आ जाती है | लेकिन इस वर्ष इस मस्ती में कोरोना वायरस ने सेंध लगाई हुई है जिसके कारण हर कोई भयभीत है | लेकिन कोरोना वायरस से घबराने और डरने के स्थान पर इसके बारे में सही जानकारी प्राप्त करें, अपनी जीवन शैली में सुधार करें और सावधानी बरतें तो इसके दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है |
इसके लिए सबसे पहली आवश्यकता है अपने आसपास और घर में सफाई रखने की, कुछ देर के लिए धूप में बैठने की तथा कपड़ों को धूप में सुखाने की सलाह एक्सपर्ट्स दे रहे हैं | कुछ और सुझाव भी समाचारों के माध्यम से प्राप्त हो रहे हैं, जैसे: हाथों को कई बार साफ़ करें और हैण्ड सेनीटाईज़र का प्रयोग अधिक से अधिक करें, हर पन्द्रह मिनट में थोड़ा सा गुनगुना पानी अवश्य पी लें, आइसक्रीम, कोल्डड्रिंक, ठण्डी छाछ या लस्सी इत्यादि का सेवन न करें, घर का पका सन्तुलित आहार लें और जैसा सभी आयुर्वेद को जानने वाले बता रहे हैं – तुलसी-लौंग-हल्दी-अदरख का काढ़ा या गिलोय का काढ़ा का सेवन करें | साथ में विटामिन सी से युक्त फलों जैसे संतरा, मौसमी, आँवला, नीम्बू इत्यादि के सेवन करते रहें | साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए अनुलोम विलोम तथा कपाल भाति प्राणायाम करें और निश्चिन्त होकर होली की मस्ती में झूम उठें |
तो, त्यौहार मनाएँ – लेकिन सावधानीपूर्वक – एक्सपर्ट्स के सुझावों को मानकर | क्योंकि इस कोरोना वायरस से डरकर होली की गुझिया यदि नहीं खाईं तो होली की जिस मस्ती का साल भर से इंतज़ार कर रहे थे उस मस्ती में मिठास कहाँ से घुलेगी ? तो आइये, अर्चना गर्ग से सीखते हैं गुझिया बनाने की विधि – रेखा अस्थाना की रंगों से भरी कविता के साथ – जिसमें एक विरहिणी नायिका का चित्रण बड़ी ख़ूबसूरती से किया गया है…
डॉ पूर्णिमा शर्मा
तो सबसे पहले गुझिया की मिठास
सामग्री…
मैदा 250 ग्राम
घी 500 ग्राम तलने हेतु
चीनी 150 ग्राम पीसी हुई
मावा 150 ग्राम
मेवा चिरौंजी, किशमिश, छोटी इलायची पीसी हुई
विधि…
मैदा में दो कलछुल घी डालकर मिला लें । जब हाथ में दबाने से लड्डू बंधने लगे तो गुनगुने पानी से मैदा को गूंध लें।
मावे को कढ़ाई में भूने गुलाबी होने तक । उसमें पीसी चीनी व मेवे मिलाएँ, इलायची पाउडर चुटकी भर मिलाएँ।
मैदा की छोटी छोटी लोई लेकर पूड़ी का आकार दें । उसमें मावे का मिक्शचर भरें । गुझिया की आकृति दें । उसको अच्छी तरह पानी से बंद करें । किनारा गोठें या गुजिया कटर से किनारा बंद करें । सबको सूती कपड़े से ढककर रखें ।
घी को कढ़ाई में गरम करें फिर आँच धीमी करें । पाँच या छः गुझिया को एक साथ तलें । हल्का गुलाबी होने तक तलें । प्लेट में निकालें । ठण्डा होने पर ही डिब्बे में बंद करें ।
गुझिया को आप चाहे तो पाग भी सकती हैं । इसके लिए गुझिया को बनाने के बाद आधी तार की चाशनी में केसर पिश्ता डाल कर उसमें गुजिया पाग ले ।
ध्यान रहे यदि आप गुजिये को पाग रही हैं तो अन्दर फिलिंग में चीनी कम डालें ।
अर्चना गर्ग
पिया बिन फाग अधूरा रे….
क्यों गये पिया परदेस रे, सखी क्यों गये पिया परदेस रे ||
ठंडक ने ली करवट तो पुलकित हो उठी धरा,
कुसुमित हो उठे विटप सब टेसू ने सुन्दरता फैलाई रे ।
सखी क्यों गये पिया परदेस रे ||
सरसों फूली देखकर मन में उठे हूक रे ।
सखी क्यों गये पिया परदेस रे ||
सुन कोयल की कूक को मन मेरा क्यों घबराए रे ।
सखी क्यों गये पिया परदेस रे ||
बिना पिया मुस्कान के होली का सब रंग फीका रे ।
सखी क्यों गये पिया परदेस रे ||
पूआ गुजिया की मिठास भी मुझको लागे कड़वी रे ।
सखी क्यों गये पिया परदेस रे ||
पिया मिलन की आस से हुए गुलाबी सब सपने रे |
सखी क्यों गये पिया परदेस रे ||
सखी पिया बिन फाग अधूरा रे ||
रेखा अस्थाना
Selfishness and selflessness
स्वार्थ और स्वार्थहीनता
स्वार्थ और स्वार्थहीनता – यानी निस्वार्थता – दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं…
वास्तव में स्वार्थ यानी स्व + अर्थ अर्थात अपने लिए किया गया कार्य | हम सभी अपने लिए ही कार्य करते हैं – अपने आनन्द के लिए, अपने जीवन यापन के लिए, अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए | यदि हम अपने लिए ही कार्य नहीं कर सकते तो फिर दूसरों के लिए कुछ भी कैसे कर सकते हैं ? जब तक हम स्वयं सन्तुष्ट और प्रसन्न नहीं होंगे तब तक दूसरों का विचार भी हमारे मन में नहीं आ सकता | संसार में जितने भी सम्बन्ध हैं – शिशु के माता के गर्भ में आने से लेकर – सभी स्वार्थवश ही बनते हैं | संसार
में समस्त प्रकार के सम्बन्धों के मध्य प्रेम भावना इसी स्वार्थ का परिणाम है – और ये स्वार्थ है आनन्द | आनन्द प्राप्ति के लिए ही हम परस्पर प्रेम की भावना से रहते हैं | इस प्रकार देखा जाए तो स्वार्थ नींव है किसी भी सम्बन्ध की | समस्या तब उत्पन्न होती है जब हम स्वार्थ यानी आनन्द को भुलाकर केवल अपने ही लाभ हानि के विषय में सोचना आरम्भ कर देते हैं और दूसरों के लिए समस्या उत्पन्न करना आरम्भ कर देते हैं |
संसार में हर प्राणी अपने स्वयं के हित के लिए ही कार्य करता है | जैसे अपनी तथा अपने परिवार और समाज की रक्षा करना भी एक प्रकार का स्वार्थ ही है | एक जीव अपनी उदर पूर्ति के लिए दूसरे जीव का भक्षण करता है – यह भी स्वार्थ ही है | व्यक्ति को अपने जीवन निर्वाह के लिए स्वार्थ सिद्ध करना अत्यन्त आवश्यक है | किन्तु यह स्वार्थ सिद्धि यदि मर्यादा के भीतर रहकर की जाएगी तो इसके कारण कोई हानि किसी की नहीं होगी, बल्कि हो सकता है दूसरों का लाभ ही हो जाए |
इसे हम ऐसे समझ सकते हैं कि एक व्यक्ति एक इण्डस्ट्री लगाता है | लगाता है स्वयं धनोपार्जन के लिए ताकि वह और उसका परिवार सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर सकें, लेकिन उसके इण्डस्ट्री लगाने से अन्य बहुत से लोगों को वहाँ धनोपार्जन का अवसर प्राप्त होता है | इस प्रकार उस व्यक्ति के द्वारा किये गए स्वार्थपूर्ण कार्य से अन्यों का भी हित हो रहा है तो इस प्रकार का स्वार्थ तो हर किसी समर्थ व्यक्ति को करना चाहिए | इसे और इस तरह समझ सकते हैं कि हम अपने घरों में काम करने के लिए किसी व्यक्ति – महिला या पुरुष – को रखते हैं तो ये हमारा स्वार्थ है कि हमें उसकी सहायता मिल जाती है अपने दिन प्रतिदिन के कार्यों में, लेकिन साथ ही उस व्यक्ति को भी आर्थिक सहायता हमारे इस कृत्य से प्राप्त होती है – हम कहेंगे की कि इस प्रकार के स्वार्थ अवश्य सिद्ध करना चाहिए |
वास्तव में मनुष्य की आवश्यकताएँ ही उसका सबसे बड़ा स्वार्थ हैं | कामवाली बाई भी उसी स्वार्थ के कारण – यानी अपनी और परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए – हमारे आपके यहाँ कार्य करती है | कार्य का आरम्भ ही स्वार्थ के कारण होता है | स्वार्थ समाप्त हो जाए तो कर्म की इच्छा ही न रह जाए और मनुष्य निष्कर्मण्य होकर बैठ जाए | अतः अपनी तथा अपने साथ साथ दूसरों की आवश्यकताओं की पूर्ति का स्वार्थ सिद्ध करना तो हर व्यक्ति का उत्तरदायित्व है |
किन्तु समस्या वहाँ उत्पन्न होती है जब स्वार्थ असन्तुलित हो जाता है | मान लीजिये हम इस जुगत में लग जाएँ कि काम करने वाली बाई से कम पैसे में किस तरह अधिक से अधिक काम करा सकें, बात बात पर उस पर गुस्सा करने लग जाएँ, उसके प्रति सहृदयता का भाव न रखें तो यह स्वार्थ की मूलभूत भावना का अतिक्रमण होगा और निश्चित रूप से इसका परिणाम किसी के भी हित में नहीं होगा | स्वार्थ की अधिकता होते ही व्यक्ति में लोभ आदि दुर्गुण बढ़ते जाते है और वह अनुचित प्रयासों से कार्य सिद्ध करना आरम्भ कर देता है | विवेक की कमी हो जाने के कारण मनुष्य परिणाम की भी चिन्ता करना छोड़ देता है और विनाश की ओर अग्रसर होता जाता है | हमने घरों का उदाहरण दिया है, लेकिन हर जगह यही नियम लागू होता है – चाहे आपका कोई व्यवसाय हो, पाठशाला हो, अस्पताल हो – कुछ भी हो – स्वार्थ की परिभाषा तो यही रहेगी |
एक और छोटा सा उदाहरण अपने परिवारों का ही लें – सन्तान को हम जन्म देते हैं, पाल पोस कर बड़ा करते हैं, अच्छी शिक्षा दीक्षा का प्रबन्ध करते हैं | क्यों करते हैं हम ये सब ? क्योंकि हमें आनन्द प्राप्त होता है इस सबसे | और हमारा ये आनन्द प्राप्ति का स्वार्थ अच्छा स्वार्थ है जिससे हमारी सन्तान प्रगति की ओर अग्रसर होती है | लेकिन उसके बदले में जब हम सन्तान से अपेक्षा रखनी आरम्भ कर देते हैं तो हमारे स्वार्थ का रूप विकृत होना आरम्भ हो जाता है जिसके कारण सन्तान के साथ सम्बन्धों में दरार आनी आरम्भ हो जाती हैं | सन्तान ने तो हमसे नहीं कहा था हमें जन्म दो और हमारा लालन पालन करो, हमने अपने सुख के लिए किया | अब आगे उसकी इच्छा – वो हमें हमारे स्नेह का प्रतिदान दे या न दे | और विश्वास कीजिए, जब हम सन्तान से किसी प्रकार की अपेक्षा नहीं रखेंगे तो हमें स्वयं ही सन्तान से वह स्नेह और सम्मान प्राप्त होगा – क्योंकि यह सन्तान का स्वार्थ है – उसे इसमें आनन्द की अनुभूति होती है | अर्थात आवश्यकता बस इतनी सी है कि स्वार्थसिद्धि का प्रयास अवश्य करें, किन्तु निस्वार्थ भाव से – फल की चिन्ता किये बिना | जहाँ फल की चिन्ता आरम्भ की कि स्वार्थ साधना का रूप विकृत हो गया |
अतः, आत्मोन्नति के लिए स्वार्थ की निस्वार्थता में परिणति नितान्त आवश्यक है… हम सब अपनी इच्छाओं और महत्त्वाकांक्षाओं के क्षेत्र को विस्तार देकर उन्हें निस्वार्थ बनाने का प्रयास करते हैं तो अपने साथ साथ समाज की और देश की उन्नति में भी सहायक हो सकते हैं…
डॉ पूर्णिमा शर्मा
https://www.astrologerdrpurnimasharma.com/2020/02/26/selfishness-and-selflessness/
Stress “Deal with it or live with it” — your choice
STRESS —- Stress is a normal reaction the body has when changes occur. It can respond to these changes physically, mentally, or emotionally.
It is a feeling of emotional or physical tension. It can come from any event or thought that makes you feel frustrated, angry, or nervous.
Stress is your body’s reaction to a challenge or demand.
In short bursts, stress can be positive, such as when it helps you avoid danger or meet a deadline
Signs of stress —-
Try these tips to get out of stress fast.
10.Work out or do something active. Exercise is one of the best antidotes for stress.
We are here to help you
Join us at our integrated clinic every Thursday at Life care center
Dr Ruby Bansal
Adults also need vaccine like children
You’re never too old to get vaccinated!
Adult immunization in India is the most ignored part of heath care services.
Vaccines protects us from many diseases like children adults also need vaccine many diseases are vaccine preventable like hepatitis b, flu, pneumonia, cervical cancer etc
And due to lack of information and not taking vaccine many people are falling sick and even dying with the vaccine preventable diseases.
Vaccines of adults is very important given that >25% of mortality are due to infectious diseases. Vaccines are recommended for adults on the basis of age, prior vaccinations, health conditions, lifestyle, occupation, and travel. There have been significant efforts to curb morbidity, mortality, and disability among adults particularly due to communicable diseases such as tetanus, diphtheria, pertussis, hepatitis A, hepatitis B, human papilloma virus, measles, mumps, rubella, meningococcus, pneumococcus, typhoid, influenza, and chickenpox.
Few vaccines needed by adults are why:
Protection from some childhood vaccines can wear off over time
Tetanus, diphtheria, and acellular pertussis vaccination
Measles, mumps, and rubella vaccination
Administer to adults without evidence of immunity to varicella 2 doses of varicella vaccine (VAR) 4–8 weeks apart if previously received no varicella-containing vaccine (if previously received 1 dose of varicella-containing vaccine, administer 1 dose of VAR at least 4 weeks after the first
Human papillomavirus vaccination
Dr Ruby Bansal, MD, FIHM
HOD preventive Health AND HIV/AIDS
Yashoda superspeciality hospital
Kaushambi, Ghaziabad
Jt. Secretary WOW India
Story of a day and night
कहानी दिवस और निशा की
हर भोर उषा की किरणों के साथ
शुरू होती है कोई एक नवीन कहानी…
हर नवीन दिवस के गर्भ में
छिपे होते हैं न जाने कितने अनोखे रहस्य
जो अनावृत होने लगते हैं चढ़ने के साथ दिन के…
दिवस आता है अपने पूर्ण उठान पर
तब होता है भान दिवस के अप्रतिम दिव्य सौन्दर्य का…
सौन्दर्य ऐसा, जो करता है नृत्य / रविकरों की मतवाली लय पर
अकेला, सन्तुष्ट होता स्वयं के ही नृत्य से
मोहित होता स्वयं के ही सौन्दर्य और यौवन पर
देता हुआ संदेसा
कि जीवन नहीं है कोई बोझ / वरन है एक उत्सव
प्रकाश का, गीत का, संगीत का, नृत्य का और उत्साह का…
दिन ढलने के साथ नीचे उतरती आती है सन्ध्या सुन्दरी
तो चल देता है दिवस / साधना के लिए मौन की
ताकि सुन सके जगत सन्ध्या सुन्दरी का मदिर राग…
और बन सके साक्षी एक ऐसी बावरी निशा का
जो यौवन के मद में चूर हो करती है नृत्य
पहनकर झिलमिलाते तारकों का मोहक परिधान
चन्द्रिका के मधुहासयुक्त सरस विहाग की धुन पर…
थक जाएँगी जब दोनों सखियाँ
तो गाती हुई राग भैरवी / आएगी भोर सुहानी
और छिपा लेगी उन्हें कुछ पल विश्राम करने के लिए
अपने अरुणिम आँचल की छाँव में…
फिर भेजेगी सँदेसा चुपके से / दिवस प्रियतम को
कि अवसर है, आओ, और दिखाओ अपना मादक नृत्य
अपनी अरुण-रजत किरणों के साथ
ऐसी है ये कहानी / दिवस और निशा की
जो देती है संदेसा / कि हो जाए बन्द यदि कोई एक द्वार
या जीवन संघर्षों के साथ नृत्य करते / थक जाएँ यदि पाँव
मत बैठो होकर निराश
त्याग कर चिन्ता बढ़ते जाओ आगे / देखो चारों ओर
खुला मिलेगा कोई द्वार निश्चित ही
जो पहुँचाएगा तुम्हें अपने लक्ष्य तक
निर्बाध… निरवरोध…
उसी तरह जैसे ढलते ही दिवस के / ठुमकती आती है सन्ध्या साँवरी
अपनी सखी निशा बावरी के साथ
और थक जाने पर दोनों के
भोर भेज देती है निमन्त्रण दिवस प्रियतम को
भरने को जगती में उत्साह
यही तो क्रम है सृष्टि का… शाश्वत… चिरन्तन…
डॉ. पूर्णिमा शर्मा
Happy republic day
गणतन्त्र दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ
अल्पानामपि वस्तूनां संहति: कार्यसाधिका
तॄणैर्गुणत्वमापन्नैर्बध्यन्ते मत्तदन्तिन:।। हितोपदेश 1/35
छोटी छोटी वस्तुओं को भी यदि एक स्थान पर एकत्र किया जाए तो उनके द्वारा बड़े से बड़े कार्य भी किये जा सकते हैं | उसी प्रकार जैसे घास के छोटे छोटे तिनकों से बनाई गई डोर से एक मत्त हाथी को भी बाँधा जा सकता है |
वास्तव में एकता में बड़ी शक्ति है ऐसा हम सभी जानते हैं | तो क्यों न आज गणतन्त्र दिवस के शुभावसर पर हम सभी मनसा वाचा कर्मणा एक हो जाने का संकल्प लें ? इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि हम सब एक जैसे ही कार्य करें, एक जैसी ही बोली बोलें या एक जैसे ही विचार रखें | निश्चित रूप से ऐसा तो सम्भव ही नहीं है | प्रत्येक व्यक्ति की पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, व्यावसायिक आदि विभिन्न परिस्थितियों की आवश्यकताओं के अनुसार हर व्यक्ति मनसा वाचा कर्मणा एक दूसरे से अलग ही होगा | हर कोई एक ही बोली नहीं बोल सकता, हर व्यक्ति की सोच अलग होगी, हर व्यक्ति का कर्म अलग होगा |
मनसा वाचा कर्मणा एक होने का अर्थ है कि हम चाहे अपनी परिस्थितियों के अनुसार जो भी कुछ करें, पर मन वचन और कर्म से किसी अन्य को किसी प्रकार की हानि
पहुँचाने का जाने अनजाने प्रयास न करें | और जब आवश्यकता हो तो पूरी दृढ़ता के साथ एक दूसरे को सहयोग दें |
मनसा वाचा कर्मणा एक सूत्र में गुँथने का अर्थ है कि हम अपनी व्यक्तिगत समस्याओं और आवश्यकताओं के साथ साथ सामूहिक समस्याओं और आवश्यकताओं पर भी ध्यान दें… जैसे बच्चों और महिलाओं का सशक्तीकरण यानी Empowerment… और बच्चों तथा महिलाओं का स्वास्थ्य यानी
Good Health… यदि इन दोनों विषयों के लिए हम सामूहिक प्रयास करते हैं तो हम मनसा वाचा कर्मणा एकता की डोरी में ही गुँथे हुए हैं…
सर शान से उठाए लहराता तिरंगा भी यही तो सन्देश देता है कि कितनी भी विविधताएँ हो, कितने भी वैचारिक
मतभेद हों, किन्तु अन्ततोगत्त्वा राष्ट्रध्वज के केन्द्र में चक्रस्वरूप सबके विचारों का केन्द्र देश ही होता है… अर्थात अपने अपने कार्य करते हुए, अपनी अपनी सोच के साथ, अपनी अपनी भाषा का सम्मान करते हुए साथ मिलकर आगे बढ़ते जाना… ऐसी स्थिति में न विचार बाधा बनेंगे, न भाषा, न वर्ण, न वेश, और न ही कर्म… ऐसे देश को निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर होने से कोई रोक नहीं सकता…
एकता की इसी भावना के साथ सभी को गणतन्त्र दिवस की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ…
डॉ पूर्णिमा शर्मा