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Relevance of Kanya Pujan in Navratri Festival

Dr. Purnima Sharma
Dr. Purnima Sharma

नवरात्रों में कन्या पूजन की प्रासंगिकता

मंगलवार तेरह अप्रैल यानी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से वासन्तिक नवरात्र आरम्भ होने जा रहे हैं | अभी पिछले दिनों हमने नवरात्रों का पञ्चांग पोस्ट किया था और नवरात्रों में घट स्थापना के महत्त्व पर बात की थी | आज आगे…

शारदीय नवरात्र हों या चैत्र नवरात्र – माँ भगवती को उनके नौ रूपों के साथ आमन्त्रित करके उन्हें स्थापित किया जाता है और फिर अन्तिम दिन कन्या अथवा कुमारी पूजन के साथ उन्हें विदा किया जाता है | कन्या पूजन किये बिना नवरात्रों की पूजा अधूरी मानी जाती है | प्रायः अष्टमी और नवमी को कन्या पूजन का विधान है | इस वर्ष 19/20 अप्रैल को अर्द्धरात्रि में बारह बजे के बाद अष्टमी तिथि का आगमन हो रहा है जो 20/21 की मध्यरात्रि में लगभग बारह बजकर तैंतालीस मिनट तक रहेगी और उसके बाद नवमी तिथि का आरम्भ हो जाएगा, जो 21/22 अप्रैल की मध्यरात्रि में लगभग बारह बजकर पैंतीस मिनट तक रहेगी | अतः बीस अप्रैल को अष्टमी और इक्कीस को रामनवमी की कन्याओं पूजा की जाएगी |

हम बात कर रहे हैं कन्या पूजन की प्रासंगिकता के विषय में | देवी भागवत महापुराण के अनुसार दो वर्ष से दस वर्ष की आयु की कन्याओं का पूजन किया जाना चाहिए | प्रस्तुत हैं कन्या पूजन के लिए कुछ मन्त्र…

दो वर्ष की आयु की कन्या – कुमारी

ॐ ऐं ह्रीं क्रीं कौमार्यै नमः

जगत्पूज्ये जगद्वन्द्ये सर्वशक्तिस्वरूपिणी |

पूजां गृहाण कौमारी, जगन्मातर्नमोSस्तुते ||

तीन वर्ष की आयु की कन्या – त्रिमूर्ति

ॐ ऐं ह्रीं क्रीं त्रिमूर्तये नम:

त्रिपुरां त्रिपुराधारां त्रिवर्षां ज्ञानरूपिणीम् |

त्रैलोक्यवन्दितां देवीं त्रिमूर्तिं पूजयाम्यहम् ||

चार वर्ष की कन्या – कल्याणी

ॐ ऐं ह्रीं क्रीं कल्याण्यै नम:
कालात्मिकां कलातीतां कारुण्यहृदयां शिवाम् |

कल्याणजननीं देवीं कल्याणीं पूजयाम्यहम् ||

पाँच वर्ष की कन्या – रोहिणी पूजन

ॐ ऐं ह्रीं क्रीं रोहिण्यै नम:
अणिमादिगुणाधारां अकराद्यक्षरात्मिकाम् |

अनन्तशक्तिकां लक्ष्मीं रोहिणीं पूजयाम्यहम् ||
छह वर्ष की कन्या – कालिका  

ॐ ऐं ह्रीं क्रीं कालिकायै नम:

कामाचारीं शुभां कान्तां कालचक्रस्वरूपिणीम् |

कामदां करुणोदारां कालिकां पूजयाम्यहम् ||

सात वर्ष की कन्या – चण्डिका

ॐ ऐं ह्रीं क्रीं चण्डिकायै नम:

चण्डवीरां चण्डमायां चण्डमुण्डप्रभंजिनीम् |

पूजयामि सदा देवीं चण्डिकां चण्डविक्रमाम् ||

आठ वर्ष की कन्या – शाम्भवी

ॐ ऐं ह्रीं क्रीं शाम्भवीं नम:

सदानन्दकरीं शान्तां सर्वदेवनमस्कृताम् |

सर्वभूतात्मिकां लक्ष्मीं शाम्भवीं पूजयाम्यहम् ||

नौ वर्ष की कन्या – दुर्गा

ॐ ऐं ह्रीं क्रीं दुर्गायै नम:

दुर्गमे दुस्तरे कार्ये भवदुःखविनाशिनीम् |

पूजयामि सदा भक्त्या दुर्गां दुर्गार्तिनाशिनीम् ||

दस वर्ष की कन्या – सुभद्रा

ॐ ऐं ह्रीं क्रीं सुभद्रायै नम:

सुभद्राणि च भक्तानां कुरुते पूजिता सदा |

सुभद्रजननीं देवीं सुभद्रां पूजयाम्यहम् ||

|| एतै: मन्त्रै: पुराणोक्तै: तां तां कन्यां समर्चयेत ||

इन नौ कन्याओं को नवदुर्गा की साक्षात प्रतिमूर्ति माना जाता है | इनकी मन्त्रों के द्वारा पूजा करके भोजन कराके उपहार दक्षिणा आदि देकर इन्हें विदा किया जाता है तभी नवरात्रों में देवी की उपासना पूर्ण मानी जाती है | साथ में एक बालक की पूजा भी की जाती है और उसे भैरव का स्वरूप माना जाता है, और इसके लिए मन्त्र है : “ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ते नम:” |

हमारी अपनी मान्यता है कि सभी बच्चे भैरव अर्थात ईश्वर का स्वरूप होते हैं और सभी बच्चियाँ माँ भगवती का स्वरूप होती हैं, क्योंकि बच्चों में किसी भी प्रकार के छल कपट आदि का सर्वथा अभाव होता है | यही कारण है कि “जब कोई शिशु भोली आँखों मुझको लखता, वह सकल चराचर का साथी लगता मुझको |”

अतः कन्या पूजन के दिन जितने अधिक से अधिक बच्चों को भोजन कराया जा सके उतना ही पुण्य लाभ होगा | साथ ही कन्या पूजन तभी सार्थक होगा जब संसार की हर कन्या शारीरिक-मानसिक-बौद्धिक-सामाजिक-आर्थिक हर स्तर पर पूर्णतः स्वस्थ और सशक्त होगी और उसे पूर्ण सम्मान प्राप्त होगा |

किन्तु एक बात का ध्यान अवश्य रखें… यदि हम कन्या का – महिला का – सम्मान नहीं कर सकते, कन्याओं की अथवा कन्या भ्रूण की हत्या में किसी भी प्रकार से सहभागी बनते हैं… तो हमें देवी की उपासना का अथवा कन्या पूजन का भी कोई अधिकार नहीं है… क्योंकि हम केवल दिखावा मात्र करते हैं… ऐसा कैसे सम्भव है कि एक ओर तो हम साक्षात त्रिदेवी माता लक्ष्मी-दुर्गा-सरस्वती की प्रतीक कन्याओं को स्वयं पर बोझ समझकर कन्या भ्रूण हत्या जैसे घृणित कर्म के साक्षी बनें और दूसरी ओर देवी की उपासना और कन्या पूजन भी करें…? माँ भगवती की कृपादृष्टि चाहिए तो पहले हमें कन्याओं को समाज का आवश्यक अंग समझते हुए उनके प्रति सम्मान की और स्नेह की भावना अपने मन में दृढ़ करनी होगी… साथ ही अपने परिवारों के बच्चों के साथ ही यदि उन बच्चों को भी भोजन कराया जाए जिनके जीवन में भोजन आदि का अभाव है और उन्हें कुछ ऐसी वस्तुएँ उपहार स्वरूप दी जाएँ जिनसे उन्हें अपने अध्ययन में सहायता प्राप्त हो… तभी हम समझते हैं कि हमारे द्वारा की गई माँ भगवती की उपासना और कन्या पूजन सार्थक होगा…

यद्यपि कोरोना अभी समाप्त नहीं हुआ है इस कारण से सम्भव है इस वर्ष कन्या पूजन में अधिक बच्चे न उपलब्ध हो सकें… फिर भी अधिक से अधिक बच्चों को अष्टमी और नवमी तिथियों को भोजन कराते हुए पूर्ण हर्षोल्लासपूर्वक जगदम्बा को अगले नवरात्रों में आने का निमन्त्रण देते हुए विदा करें, इस कामना के साथ कि माँ भगवती अपने सभी रूपों में जगत का कल्याण करें… सभी को अग्रिम रूप से वासन्तिक नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएँ…

यातु देवी त्वां पूजामादाय मामकीयम् |

इष्टकामसमृद्ध्यर्थं पुनरागमनाय च ||

__________________कात्यायनी डॉ पूर्णिमा शर्मा______________

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Kalash Sthapna in Navratri Festival

कलश स्थापना और नवरात्र

Dr. Purnima Sharma
Dr. Purnima Sharma

देवी प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद, प्रसीद मातर्जगतोSखिलस्य |

प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं, त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य ||

रंगों का पर्व होली तो सम्पन्न हो चुका है – यानी होली तो “हो ली”… अब चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी तेरह अप्रैल मंगलवार से आनन्द नामक सम्वत्सर 2078 का आरम्भ होने जा रहा है और इस दिन से समस्त हिन्दू सम्प्रदाय में हर घर में माँ भगवती की पूजा अर्चना का दश दिवसीय उत्सव साम्वत्सरिक नवरात्र के रूप में आरम्भ हो जाएगा जो इक्कीस अप्रैल को भगवान श्री राम के जन्मदिवस रामनवमी के साथ सम्पन्न होगा | कर्नाटक एवम् आन्ध्र में उगडी और महाराष्ट्र का गुडी पर्व भी इसी दिन है | साथ ही चौदह अप्रैल को बैसाखी, मेष संक्रान्ति अर्थात सूर्य का मेष राशि में संक्रमण तथा तमिलनाडु में मनाया जाने वाला चैत्री विशु के पर्व और पन्द्रह अप्रैल को पौहिला बैसाख भी है | सर्वप्रथम सभी को उगडी, गुडी पर्व, बैसाखी, पौहिला बैसाख, चैत्री विशु और साम्वत्सरिक नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएँ…

कुछ गणनाओं के अनुसार “आनन्द” नामक सम्वत्सर विलुप्त होने के कारण सीधा “राक्षस” नाम के सम्वत्सर का ही आरम्भ होगा चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को और कुछ गणनाओं के अनुसार “आनन्द” सम्वत्सर विलुप्त नहीं हुआ है और इसी सम्वत्सर का आरम्भ होने जा रहा है | ये सब वैदिक ज्योतिष की गणनाओं का विषय है, जो वास्तव में बहुत जटिल प्रक्रिया है और इसकी गणना गुरु यानी बृहस्पति के गोचर के आधार पर की जाती है | इस विषय में फिर कभी चर्चा करेंगे | अभी हम इस विस्तार में न जाते हुए दूसरे मत को ही मान रहे हैं – जिसके अनुसार “प्लव” नामक शक संवत 1943 तथा “प्रमादी” नामक सम्वत्सर की समाप्ति के बाद अब “आनन्द” नामक विक्रम सम्वत 2078 चलेगा और संकल्पादि में इसी का उच्चारण किया जाएगा |

यों बारह अप्रैल को प्रातः आठ बजकर एक मिनट के लगभग वृषभ लग्न में प्रतिपदा तिथि का आरम्भ होने के कारण इसी समय से नव सम्वत्सर का भी आरम्भ हो जाएगा | इस समय किन्स्तुघ्न करण और वैधृति योग होगा, तथा सूर्य और चन्द्र दोनों रेवती नक्षत्र पर समान अंशों पर होने के कारण शुभ योग बना रहे होंगे तथा साथ ही बुधादित्य योग भी होगा | लेकिन, क्योंकि उदयकाल में प्रतिपदा तिथि नहीं है इसलिए तेरह अप्रैल से ही सम्वत्सर का आरम्भ माना जाएगा |

इस वर्ष का राजा, मन्त्री तथा वर्षा का अधिकार मंगल के पास है | वित्त मन्त्रालय गुरु अर्थात बृहस्पति को प्राप्त हुआ है | धान्येश यानी फसलों का स्वामी बुध है, रसेश यानी सभी प्रकार के रसों के स्वामी सूर्य, निरेशेश यानी धातु के स्वामी शुक्र तथा फलेश यानी फलों और सब्ज़ियों के स्वामी चन्द्र हैं | इन सभी की अपनी अपनी व्याख्याएँ हैं जो इस लेख का विषय नहीं हैं | हम बात कर रहे हैं नवरात्र में कलश स्थापना की |

भारतीय वैदिक परम्परा के अनुसार किसी भी धार्मिक अनुष्ठान को करते समय सर्वप्रथम कलश स्थापित करके वरुण देवता का आह्वाहन किया जाता है | आश्विन और चैत्र माह की शुक्ल प्रतिपदा को घट स्थापना के साथ माँ दुर्गा की पूजा अर्चना आरम्भ हो जाती है | घट स्थापना के मुहूर्त पर विचार करते समय कुछ विशेष बातों पर ध्यान रखना आवश्यक होता है | सर्वप्रथम तो अमा युक्त प्रतिपदा – अर्थात सूर्योदय के समय यदि कुछ पलों के लिए भी अमावस्या तिथि हो तो उस प्रतिपदा में घट स्थापना शुभ नहीं मानी जाती | इसी प्रकार चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग में घट स्थापना अशुभ मानी जाती है | माना जाता है कि चित्रा नक्षत्र में यदि घट स्थापना की जाए तो धन नाश और वैधृति योग में हो तो सन्तान के लिए अशुभ हो सकता है | साथ ही देवी का आह्वाहन, स्थापन, नित्य प्रति की पूजा अर्चना तथा विसर्जन आदि समस्त कार्य प्रातःकाल में ही शुभ माने जाते हैं | किन्तु यदि प्रतिपदा को सारे दिन ही चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग रहें या प्रतिपदा तिथि कुछ ही समय के लिए हो तो आरम्भ के तीन अंश त्याग कर चतुर्थ अंश में घट स्थापना का कार्य आरम्भ कर देना चाहिए |

इस वर्ष यों तो प्रतिपदा तिथि का आरम्भ बारह अप्रैल को प्रातः आठ बजे के लगभग हो जाएगा जो तेरह अप्रैल को प्रातः सवा दस बजे तक रहेगी | किन्तु, प्रथमतः बारह अप्रैल को उदया तिथि नहीं है और साथ ही वैधृति योग भी बारह अप्रैल को दिन में लगभग ढाई बजे तक रहेगा | अतः घट स्थापना तेरह अप्रैल को ही की जाएगी | इस दिन सूर्योदय प्रातः 5:57 पर होगा और सूर्योदय के समय मीन लग्न में भगवान भास्कर होंगे, अश्विनी नक्षत्र, बव करण तथा विषकुम्भ योग होगा | साथ ही लग्न में बुधादित्य योग भी बन रहा है और द्विस्वभाव लग्न है जो घट स्थापना के लिए अत्युत्तम मानी जाती है | अतः प्रातः 5:57 से सवा दस बजे तक घट स्थापना का शुभ मुहूर्त है | जो लोग इस अवधि में घट स्थापना नहीं कर पाएँगे वे 11:56 से 12:47 तक अभिजित मुहूर्त में घट स्थापना कर सकते हैं |

घट स्थापना करते समय जो मन्त्र बोले जाते हैं उनका संक्षेप में अभिप्राय यही है कि घट में समस्त ज्ञान विज्ञान का, समस्त ऐश्वर्य का तथा समस्त ब्रह्माण्डों का समन्वित स्वरूप विद्यमान है | जैसे:

कलशस्य मुखे विष्णुः, कण्ठे रुद्रो समाहिताः |

मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा, मध्ये मातृगणा: स्मृता: ||

कुक्षौ तु सागरा: सर्वे, सप्तद्वीपा वसुन्धरा |

ऋग्वेदोSथ यजुर्वेदः सामवेदो ही अथर्वण: ||

अंगैश्च सहिताः सर्वे कलशं तु समाश्रिता: |

अत्र गायत्री सावित्री शान्ति: पुष्टिकरी तथा ||

सर्वे समुद्रा: सरित: जलदा नदा:, आयान्तु देवपूजार्थं दुरितक्षयकारका: |

गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती,

नर्मदे सिन्धु कावेरी जलेSस्मिन् सन्निधिं कुरुम् ||

अर्थात कलश के मुख में विष्णु, कण्ठ में रूद्र, मूल में ब्रह्मा तथा मध्य में समस्त षोडश मातृकाएँ स्थित हैं | कुक्षि में समस्त सागर, सप्तद्वीपों वाली वसुन्धरा स्थित है | साथ ही सारे वेद वेदांग भी कलश में ही समाहित हैं | सारी शक्तियाँ कलश में समाहित हैं | समस्त पापों का नाश करने के लिए जल के समस्त स्रोत इस कलश में निवास करें |

इस प्रकार घट में समस्त ज्ञान विज्ञान का, समस्त ऐश्वर्य का तथा समस्त ब्रह्माण्डों का समन्वित स्वरूप विद्यमान माना जाता है | किसी भी अनुष्ठान के समय ब्रह्माण्ड में उपस्थित शक्तियों का आह्वाहन करके उन्हें जागृत किया जाता है ताकि साधक को अपनी साधना में सिद्धि प्राप्त हो और उसकी मनोकामनाएँ पूर्ण हों | साथ ही घट स्वयं में पूर्ण है | सागर का जल घट में डालें या घट को सागर में डालें – हर स्थिति में वह पूर्ण ही होता है तथा ईशोपनिषद की पूर्णता की धारणा का अनुमोदन करता प्रतीत होता है “पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते” | इसी भावना को जीवित रखने के लिए किसी भी धार्मिक अनुष्ठान के समय घट स्थापना का विधान सम्भवतः रहा होगा |

नवरात्रों में भी इसी प्रकार घट स्थापना का विधान है | घट स्थापना के समय एक पात्र में जौ की खेती का भी विधान है | अपने परिवार की परम्परा के अनुसार कुछ लोग मिट्टी के पात्र में जौ बोते हैं तो कुछ लोग – जिनके घरों में कच्ची ज़मीन उपलब्ध है – ज़मीन में भी जौ की खेती करते हैं | किन्हीं परिवारों में केवल आश्विन नवरात्रों में जौ बोए जाते हैं तो कहीं कहीं आश्विन और चैत्र दोनों नवरात्रों में जौ बोने की प्रथा है | इन नौ दिनों में जौ बढ़ जाते हैं और उनमें से अँकुर फूट कर उनके नौरते बन जाते हैं जिनके द्वारा विसर्जन के दिन देवी की पूजा की जाती है | कुछ क्षेत्रों में बहनें अपने भाइयों के कानों में और पुरोहित यजमानों के कानों में आशीर्वाद स्वरूप नौरते रखते हैं | इसके अतिरिक्त कुछ जगहों पर शस्त्र पूजा करने वाले अपने शस्त्रों का पूजन भी नौरतों से करते है | कुछ संगीत के क्षेत्र से सम्बन्ध रखने वाले कलाकार अपने वाद्य यन्त्रों की तथा अध्ययन अध्यापन के क्षेत्र से सम्बद्ध लोग अपने शास्त्रों की पूजा भी इन नौरतों से करते हैं |

वास्तव में नवरात्रों में जौ बोना आशा, सुख समृद्धि तथा देवी की कृपा का प्रतीक माना जाता है | ऐसी भी मान्यता है कि सृष्टि के आरम्भ में सबसे पहली फसल जो उपलब्ध हुई वह जौ की फसल थी | इसीलिए इसे पूर्ण फसल भी कहा जाता है | यज्ञ आदि के समय देवी देवताओं को जौ अर्पित किये जाते हैं | एक कारण यह भी प्रतीत होता है कि अन्न को ब्रह्म कहा गया है – अन्नं ब्रह्म इत्युपासीत् (मनु स्मृति) – अर्थात अन्न को ब्रह्म मानकर उसकी उपासना करनी चाहिए, तथा अन्नं ब्रह्मा रसो विष्णुर्भोक्ता देवो माहेश्वर: (ब्रह्म वैवर्त पुराण, ब्रह्म खण्ड) अन्न ब्रह्मा है – रस विष्णु – तथा उन्हें भोग करने वाला माहेश्वर के समान होता है | इस प्रकार की उक्तियों का अभिप्राय यही है कि जिस अन्न और जल में ईश्वर का रूप दीख पड़ता है उसका भला कोई अपमान कैसे कर सकता है ? अतः उस अन्न रूपी ब्रह्म का सम्मान करने के उद्देश्य से भी सम्भवतः इस परम्परा का आरम्भ हो सकता है | आज न जाने कितने लोग ऐसे हैं जिन्हें दो समय भोजन भी भरपेट नहीं मिल पाता | और दूसरी ओर कुछ ऐसे लोग भी हैं जो अपनी प्लेट में इतना भोजन रख लेते हैं कि उनसे खाए नहीं बन पाता और वो भोजन कूड़े के डिब्बे में फेंक दिया जाता है | यदि हम अन्न रूपी ब्रह्म का सम्मान करना सीख जाएँ तो इस प्रकार भोजन फेंकने की नौबत न आए और बहुत से भूखे व्यक्तियों को भोजन उपलब्ध हो जाए | जौ बोने की परम्परा को यदि हम इस रूप में देखें तो सोचिये प्राणिमात्र का कितना भला हो जाएगा |

अस्तु! इन नवरात्रों में हम अन्न ब्रह्म का सम्मान करने की भावना से जौ की खेती अपने घरों में स्थापित करें… हमारी भावनाएँ उदात्त होंगी तो खेती भी फलेगी फूलेगी और कोई व्यक्ति  रात को भूखा नहीं सो सकेगा… साथ ही जल का सम्मान करने की भावना से घट स्थापित करें…

“आनन्द” नाम के सम्वत्सर में कामना करते हैं कि यह वर्ष अपने नाम के अनुरूप ही समस्त रोग शोक का हरण करके सबको आनन्द और स्वास्थ्य प्रदान करे…

रोगानशेषानपहांसि तुष्टा, रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् |

त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ||

माँ भगवती प्रसन्न होने पर समस्त रोगों का नाश कर देती हैं और कुपित होने पर सभी मनोवाँछित कामनाओं को नष्ट कर देती हैं | किन्तु जो लोग देवी की शरण में आते हैं उन पर स्वयं पर तो विपत्ति आती ही नहीं, अपने साथ आने वाले अन्य प्राणियों को भी विपत्ति से रक्षा करते हैं | अस्तु ! इन नवरात्रों में हम अन्न ब्रह्म का सम्मान करने की भावना से जौ की खेती अपने घरों में स्थापित करें… हमारी भावनाएँ उदात्त होंगी तो खेती भी फलेगी फूलेगी और कोई व्यक्ति  रात को भूखा नहीं सो सकेगा… साथ ही जल का सम्मान करने की भावना से घट स्थापित करें… इसी कामना के साथ मंगलवार 13 अप्रैल चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से आरम्भ हो रहे नवरात्र पर्व की सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ… माँ भवानी सभी का मंगल करें…

___________________कात्यायनी…

 

 

bookmark_borderNavratri Special Khandavi from Singhada Flour

Navratri Special

Dr. Purnima Sharma
Dr. Purnima Sharma

Khandavi from Singhada Flour

 

Friends! Navratri festival is near, from 13th April Navratri festivals are going to start. Almost all of us will have fast and will be busy to prepare some Falahari foods to eat during fasting. So why not make Khandavi from Singhada or Indian Water Chestnut flour… How? Let us learn from Archana Garg…

______________Dr. Purnima Sharma…

 

Khandavi from Singhada or Indian Water Chestnut flour… with Almond and Date Chutney…

 

Cooking time: 10 mins

Prep time :30 mins

Archana Garg
Archana Garg

Serves :4

Ingredients

1 cup: Singhada Flour

2 cups: Mattha (buttermilk)

1/4 cup: Grated coconut

1/4 cup: Grated carrot

As per taste: Salt

2-3: Green Chillies

3-4: Singhade (Water Chestnut)

3-4 cut in round shape for decoration

capsicum: Few twigs for decoration

Coriander: For tadka

Oil: 5-6 spoons

Almonds: 1/4 cup

Coriander

3-4: Green Chillies

As per taste: Salt

2 tsp: lemon juice

 

Method to cook:

Mix atta with cold buttermilk. Make sure there are no lumps.

Heat a pan and add this mixture. Keep stirring till it resembles a halwa like texture. Take a little on a plate and see that it doesn’t stick.

Clean the kitchen slab and spread the mixture on the slab.

Put a plastic on top of it and spread it evenly using a belan (Rolling pin) into a thin layer.

Take out the plastic and cut into thin strips.

Keep it in a plate and add tadka of coconut, green chillies and coriander.

Decorate with carrot, capsicum, green chilli and coriander.

You can use Singhada for decoration

For chutney, grind green chillies, almond, coriander and salt in a mixer to a fine paste.

Add lime juice and enjoy with khandavi.

 

Nutrition value of Singhada: it is low in calories. It has potassium, zinc, iodine, vitamin B and E. It acts as a coolant and detoxifier.

___________________Archana Garg

bookmark_borderDates for Chaitra Navratri

Dates for Chaitra Navratri

Katyayani Dr. Purnima Sharma
Katyayani Dr. Purnima Sharma

चैत्र नवरात्र 2021 की तिथियाँ

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी तेरह अप्रैल मंगलवार से नवरात्र आरम्भ होने जा रहे हैं | विक्रम सम्वत 2078 का नाम आनन्द है तथा शक सम्वत 1943 का नाम प्लव है | इसी दिन से घट स्थापना तथा माँ दुर्गा के प्रथम स्वरूप “शैलपुत्री” की उपासना के साथ ही चैत्र नवरात्र – जिन्हें वासन्तिक और साम्वत्सरिक नवरात्र भी कहा जाता है – के रूप में माँ भवानी के नवरूपों की पूजा अर्चना आरम्भ हो जाएगी जो 21 अप्रैल को भगवान श्री राम के जन्मदिवस रामनवमी और कन्या पूजन के साथ सम्पन्न होगी | इसी दिन उगडी और गुडी पर्व भी है | साथ ही चौदह अप्रैल को बैसाखी का पर्व और पन्द्रह अप्रैल को पौहिला बैसाख भी है | सर्वप्रथम सभी को उगडी, गुडी पर्व, बैसाखी, पौहिला बैसाख और साम्वत्सरिक नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएँ…

इस वर्ष का राजा और मन्त्री दोनों ही मंगल हैं | धान्येश यानी फसलों का स्वामी बुध है, मेघेश यानी वर्षा के स्वामी मंगल और चन्द्र हैं, रसेश यानी सभी प्रकार के रसों के स्वामी सूर्य, निरेशेश यानी धातु के स्वामी शुक्र तथा फलेश यानी फलों और सब्ज़ियों के स्वामी चन्द्र हैं | इस वर्ष यों तो प्रतिपदा तिथि का आरम्भ बारह अप्रैल को प्रातः आठ बजे के लगभग हो जाएगा जो तेरह अप्रैल को प्रातः सवा दस बजे तक रहेगी | किन्तु, प्रथमतः बारह अप्रैल को उदया तिथि नहीं है और साथ ही वैधृति योग भी बारह अप्रैल को दिन में लगभग ढाई बजे तक रहेगा | अतः घट स्थापना तेरह अप्रैल को ही की जाएगी | इस दिन सूर्योदय प्रातः 5:57 पर होगा और सूर्योदय के समय मीन लग्न में भगवान भास्कर होंगे, अश्विनी नक्षत्र, बव करण तथा विषकुम्भ योग होगा | साथ ही लग्न में बुधादित्य योग भी बन रहा है और द्विस्वभाव लग्न है जो घट स्थापना के लिए अत्युत्तम मानी जाती है | अतः प्रातः 5:57 से सवा दस बजे तक घट स्थापना का शुभ मुहूर्त है | जो लोग इस अवधि में घट स्थापना नहीं कर पाएँगे वे 11:56 से 12:47 तक अभिजित मुहूर्त में घट स्थापना कर सकते हैं | किन्तु साथ ही व्यक्तिगत रूप से घट स्थापना का मुहूर्त जानने के लिए अपने ज्योतिषी से अपनी कुण्डली के अनुसार मुहूर्त ज्ञात करना होगा | बुधवार 21 अप्रेल को कन्या पूजन के साथ ही नवरात्रों का विसर्जन हो जाएगा | अस्तु, सर्वप्रथम सभी को नव सम्वत्सर, गुडी पर्व, बैसाखी, पौहिला बैसाख और उगडी या युगादि की हार्दिक शुभकामनाएँ…

नवरात्रि के महत्त्व के विषय में विशिष्ट विवरण मार्कंडेय पुराण, वामन पुराण, वाराह पुराण, शिव पुराण, स्कन्द पुराण और देवी भागवत आदि पुराणों में उपलब्ध होता है | इन पुराणों में देवी दुर्गा के द्वारा महिषासुर के मर्दन का उल्लेख उपलब्ध होता है | महिषासुर मर्दन की इस कथा को “दुर्गा सप्तशती” के रूप में देवी माहात्मय के नाम से जाना जाता है | नवरात्रि के दिनों में इसी माहात्मय का पाठ किया जाता है और यह बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है | जिसमें 537 चरणों में सप्तशत यानी 700 मन्त्रों के द्वारा देवी के माहात्मय का जाप किया जाता है | इसमें देवी के तीन मुख्य रूपों – काली अर्थात बल, लक्ष्मी और सरस्वती की पूजा के द्वारा देवी के तीन चरित्रों – मधुकैटभ वध, महिषासुर वध तथा शुम्भ निशुम्भ वध का वर्णन किया जाता है | इस वर्ष नवरात्रों की तिथियाँ इस प्रकार हैं…

मंगलवार 13 अप्रैल   चैत्र शुक्ल प्रतिपदा   देवी के शैलपुत्री रूप की उपासना और घट स्थापना प्रातः 5:57 से सवा दस बजे तक मीन लग्न, बव करण और विषकुम्भ योग में, अभिजित मुहूर्त दिन में 11:56 से 12:47 तक

बुधवार 14 अप्रैल    चैत्र शुक्ल द्वितीया   देवी के ब्रह्मचारिणी रूप की उपासना, सूर्य का मेष राशि में संक्रमण, सौर नव वर्ष  

गुरूवार 15 अप्रैल    चैत्र शुक्ल तृतीया    देवी के चंद्रघंटा रूप की उपासना, गणगौर, पौहिला बैसाख  

शुक्रवार 16 अप्रैल    चैत्र शुक्ल चतुर्थी     देवी के कूष्माण्डा रूप की उपासना  

शनिवार 17 अप्रैल   चैत्र शुक्ल पञ्चमी    देवी के स्कन्दमाता रूप की उपासना, लक्ष्मी पञ्चमी  

रविवार 18 अप्रैल    चैत्र शुक्ल षष्ठी     देवी के कात्यायनी रूप की उपासना, स्कन्द षष्ठी, यमुना छठ, रामानुज जयन्ती  

सोमवार 19 अप्रेल   चैत्र शुक्ल सप्तमी    देवी के कालरात्रि रूप की उपासना, चैत्र नवपद ओली आरम्भ  

मंगलवार 20 अप्रेल   चैत्र शुक्ल अष्टमी    देवी के महागौरी रूप की उपासना

बुधवार 21 अप्रैल    चैत्र शुक्ल नवमी     देवी के सिद्धिदात्री रूप की उपासना, श्री राम जन्म महोत्सव  – राम नवमी

माँ भगवती सभी का कल्याण करें… सभी को नव सम्वत्सर तथा नवरात्र की अग्रिम रूप से हार्दिक शुभकामनाएँ…

________कात्यायनी डॉ पूर्णिमा शर्मा 

 

bookmark_border­Sheetala Saptami and Sheetala Ashtami

­Sheetala Saptami and Sheetala Ashtami

शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी

अभी दो दिन पूर्व रायपुर छत्तीसगढ़ में थे तो एक स्थान पर शीतला माता का मन्दिर देखा | ध्यान आया कि श्वसुरालय ऋषिकेश और पैतृक नगर नजीबाबाद में इसी प्रकार के

Katyayani Dr. Purnima Sharma
Katyayani Dr. Purnima Sharma

शीतला माता के मन्दिर हैं | और तब स्मरण हो आया अपने बचपन का – जब होली के बाद आने वाली शीतलाष्टमी को शीतला माता के मन्दिर पर मेला भरा करता था जो बड़ों के लिए एक ओर जहाँ शीतला माता की पूजा अर्चना का स्थान होता था वहीं हम बच्चों के लिए मनोरंजन का माध्यम होता था |

चैत्र कृष्ण सप्तमी और अष्टमी को उत्तर भारत में शीतला माता की पूजा की जाती है | कुछ स्थानों पर यह पूजा सप्तमी को होती है और कुछ स्थानों पर अष्टमी को | वैसे शीतला देवी की पूजा अलग अलग स्थानों पर अलग अलग समय की जाती है | कहीं माघ शुक्ल षष्ठी को इसका आयोजन होता है तो कहीं वैशाख कृष्ण अष्टमी को तो कहीं चैत्र कृष्ण सप्तमी-अष्टमी को | कुछ स्थानों पर होली के बाद प्रथम सोमवार अथवा बुधवार को शीतला माता की पूजा का विधान है | किन्तु चैत्र कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी को शीतला पूजा का विशेष महत्त्व है | इस वर्ष शनिवार तीन अप्रैल को प्रातः छह बजे के लगभग विष्टि करण (भद्रा) और वरीयान योग में सप्तमी तिथि का आगमन हो रहा है | सूर्योदय तीन अप्रैल को प्रातः छह बजकर नौ मिनट पर हो रहा है | अतः सूर्योदय के बाद किसी भी समय शीतला सप्तमी की पूजा की जा सकती है | जो लोग अष्टमी को शीतला देवी की पूजा करते हैं उनके लिए चार अप्रैल को सूर्योदय से पूर्व चार बजकर चौदह मिनट के लगभग अष्टमी तिथि का आगमन होगा जो अर्द्धरात्र्योत्तर 2:59 तक रहेगी | उस दिन भगवान भास्कर छह बजकर सात मिनट पर उदित होंगे | अतः सूर्योदय के बाद किसी भी समय शीतलाष्टमी की पूजा की जा सकती है |

शीतला माता का उल्लेख स्कन्द पुराण में उपलब्ध होता है | इसके लिए पहले दिन सायंकाल के समय भोजन बनाकर रख दिया जाता है और अगले दिन उस बासी भोजन का ही देवी को भोग लगाया जाता है और उसी को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है | इसका कारण सम्भवतः यही रहा होगा कि इसके बाद ऐसा मौसम आ जाता है जब भोजन बासी बचने पर खराब हो जाता है और उसे फिर से उपयोग में नहीं लाया जा सकता | और इसी कारण से कुछ स्थानों पर इसे “बासडा” अथवा “बसौड़ा” भी कहा जाता है | इस दिन लोग लाल वस्त्र, कुमकुम, दही, गंगाजल, कच्चे अनाज, लाल धागे तथा बासी भोजन से माता की पूजा करते हैं | शीतला देवी की पूजा मुख्य रूप से ऐसे समय में होती है जब वसन्त के साथ साथ ग्रीष्म का आगमन हो रहा होता है | चेचक आदि के संक्रमण का भी मुख्य रूप से ऋतु परिवर्तन का यही समय होता है |

शीतला माता का वाहन गर्दभ को माना जाता है तथा इनके हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते रहते हैं | इन सबका भी सम्भवतः यही प्रतीकात्मक महत्त्व रहा होगा कि इस ऋतु में प्रायः व्यक्तियों को चेचक खसरा जैसी व्याधियाँ हो जाती थीं | रोगी तीव्र ज्वर से पीड़ित रहता था और उस समय रोगी की हवा करने के लिए सूप ही उपलब्ध रहा होगा | नीम के पत्तों के औषधीय गुण तो सभी जानते हैं – उनके कारण रोगी के छालों को शीतलता प्राप्त होती होगी तथा उनमें किसी प्रकार के इन्फेक्शन से भी बचाव हो जाता होगा | स्कन्द पुराण में शीतला माता की पूजा के लिए शीतलाष्टक भी उपलब्ध होता है | वैसे शीतला देवी की पूजा करते समय निम्न मन्त्र का जाप किया जाता है:

वन्देsहम् शीतलां देवीं रासभस्थान्दिगम्बराम् |

मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम् ||

अर्थात गर्दभ पर विराजमान, दिगम्बरा, हाथ में झाड़ू तथा कलश और मस्तक पर सूप का मुकुट धारण करने वाली भगवती शीतला की हम वन्दना करते हैं | इसी मन्त्र से यह भी प्रतिध्वनित होता है कि शीतला देवी स्वच्छता की प्रतीक हैं – हाथ में झाडू इसी तथ्य की पुष्टि करती है कि हम सबको स्वच्छता के प्रति जागरूक और कटिबद्ध होना चाहिए, क्योंकि चेचक, खसरा तथा अन्य भी सभी प्रकार के संक्रमणों का मुख्य कारण तो गन्दगी ही है | साथ ही, समुद्रमन्थन से उद्भूत हाथों में कलश लिए आयुर्वेद के प्रवर्तक भगवान धन्वन्तरी की ही भाँति शीतला माता के हाथों में भी कलश होता है, सम्भवतः इस सबका अभिप्राय यही रहा होगा कि स्वच्छता और स्वास्थ्य के प्रति जन साधारण को जागरूक किया जाए, क्योंकि जहाँ स्वच्छता होगी वहाँ स्वास्थ्य उत्तम रहेगा, और स्वास्थ्य उत्तम रहेगा तो समृद्धि भी बनी रहेगी | सूप का भी यही तात्पर्य है कि परिवार धन धान्य से परिपूर्ण रहे |

देवी का नाम भी सम्भवतः इसी लोकमान्यता के कारण शीतला पड़ा होगा कि शीतला देवी की उपासना से दाहज्वर, पीतज्वर, फोड़े फुन्सी तथा चेचक और खसरा जैसे रक्त और त्वचा सम्बन्धी विकारों तथा नेत्रों के इन्फेक्शन जैसी व्याधियों में शीतलता प्राप्त होती है और ये व्याधियाँ निकट भी नहीं आने पातीं | आज के युग में भी शीतला देवी की उपासना स्वच्छता की प्रेरणा तथा उत्तम स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता के दृष्टिकोण से सर्वथा प्रासंगिक प्रतीत होती है… विशेष रूप से इस कोरोना काल में तो यही कहा जाएगा…

शीतला देवी की उपासना के लिए स्कन्द पुराण में शीतलाष्टक भी उपलब्ध होता है जो निम्नवत है…

||श्री शीतलाष्टकं  ||
विनियोगः-
ॐ अस्य श्रीशीतलास्तोत्रस्य महादेव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीशीतला देवता, लक्ष्मी (श्री) बीजम्, भवानी शक्तिः, सर्व-विस्फोटक-निवृत्यर्थे जपे विनियोगः  ||

ऋष्यादि-न्यासः- श्रीमहादेव ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, श्रीशीतला देवतायै नमः हृदि, लक्ष्मी (श्री) बीजाय नमः गुह्ये, भवानी शक्तये नमः पादयो, सर्व-विस्फोटक-निवृत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे  ||
ध्यानः-
ध्यायामि शीतलां देवीं, रासभस्थां दिगम्बराम्|
मार्जनी-कलशोपेतां शूर्पालङ्कृत-मस्तकाम् ||

मानस-पूजनः-
ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः| ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः| ॐ यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः| ॐ रं अग्नि-तत्त्वात्मकं दीपं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः| ॐ वं जल-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः| ॐ सं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः|
मंत्र : –
‘ॐ ह्रीं श्रीं शीतलायै नमः ||

 ||मूल-स्तोत्र ||
 ||ईश्वर उवाच ||
वन्देऽहं शीतलां-देवीं, रासभस्थां दिगम्बराम् |
मार्जनी-कलशोपेतां, शूर्पालङ्कृत-मस्तकाम्  ||1 ||

वन्देऽहं शीतलां-देवीं, सर्व-रोग-भयापहाम् |
यामासाद्य निवर्तन्ते, विस्फोटक-भयं महत्  ||2 ||

शीतले शीतले चेति, यो ब्रूयाद् दाह-पीडितः |
विस्फोटक-भयं घोरं, क्षिप्रं तस्य प्रणश्यति  ||3 ||
यस्त्वामुदक-मध्ये तु, ध्यात्वा पूजयते नरः |
विस्फोटक-भयं घोरं, गृहे तस्य न जायते  ||4 ||

शीतले ! ज्वर-दग्धस्य पूति-गन्ध-युतस्य च |
प्रणष्ट-चक्षुषां पुंसां , त्वामाहुः जीवनौषधम्  ||5 ||

शीतले ! तनुजान् रोगान्, नृणां हरसि दुस्त्यजान् |
विस्फोटक-विदीर्णानां, त्वमेकाऽमृत-वर्षिणी  ||6 ||

गल-गण्ड-ग्रहा-रोगा, ये चान्ये दारुणा नृणाम् |
त्वदनुध्यान-मात्रेण, शीतले! यान्ति सङ्क्षयम्  ||7 ||
न मन्त्रो नौषधं तस्य, पाप-रोगस्य विद्यते |
त्वामेकां शीतले! धात्री, नान्यां पश्यामि देवताम्  ||8 ||

 ||फल-श्रुति ||

मृणाल-तन्तु-सदृशीं, नाभि-हृन्मध्य-संस्थिताम् |
यस्त्वां चिन्तयते देवि ! तस्य मृत्युर्न जायते  ||9 ||

अष्टकं शीतलादेव्या यो नरः प्रपठेत्सदा |
विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न जायते  ||10 ||

श्रोतव्यं पठितव्यं च श्रद्धाभाक्तिसमन्वितैः |
उपसर्गविनाशाय परं स्वस्त्ययनं महत्  ||11 ||
शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता |
शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः  ||12 ||

रासभो गर्दभश्चैव खरो वैशाखनन्दनः |
शीतलावाहनश्चैव दूर्वाकन्दनिकृन्तनः  ||13 ||

एतानि खरनामानि शीतलाग्रे तु यः पठेत् |
तस्य गेहे शिशूनां च शीतलारुङ् न जायते  ||14 ||

शीतलाष्टकमेवेदं न देयं यस्यकस्यचित् |
दातव्यं च सदा तस्मै श्रद्धाभक्तियुताय वै  ||15 ||

|| इति श्री स्कन्दपुराणे शीतलाष्टकं स्तोत्रं सम्पूर्णम् ||

अस्तु, शीतला माता सभी के मनों को स्वच्छता और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करें यही कामना है…

______________________कात्यायनी डॉ पूर्णिमा शर्मा

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Rang ki Ekadashi

रंग की एकादशी – कुछ भूली बिसरी यादें

अभी 28 और 29 तारीख को रंगों की बौछार होली का मदमस्त कर देने वाला पर्व है… तो आज होली से ही सम्बन्धित अपनी कुछ स्मृतियों को आपके साथ साँझा कर रहे

Katyayani Dr. Purnima Sharma
Katyayani Dr. Purnima Sharma

हैं…

कल फाल्गुन शुक्ल एकादशी है, जिसे आमलकी एकादशी और रंग की एकादशी के नाम से भी जाना जाता है | इस दिन आँवले के वृक्ष की पूजा अर्चना के साथ ही रंगों का पर्व होली अपने यौवन में पहुँचने की तैयारी में होता है | बृज में जहाँ होलाष्टक यानी फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से होली के उत्सव का आरम्भ हो जाता है वहीं काशी विश्वनाथ मन्दिर में फाल्गुन शुक्ल एकादशी से इस उत्सव का आरम्भ माना जाता है | होलाष्टक के विषय में जहाँ मान्यता है कि फाल्गुन शुक्ल अष्टमी को भगवान कृष्ण प्रथम बार राधा जी के परिवार से मिलने बरसाने गए थे तो वहाँ लड्डू बाँटे गए थे, वहीं काशी विश्वनाथ में रंग की एकादशी के विषय में मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने माता पार्वती को अपने घर लिवा लाने के लिए पर्वतराज हिमालय की नगरी की ओर प्रस्थान किया था |

होलाष्टक के विषय में बहुत सी कथाएँ और मान्यताएँ जन साधारण के मध्य प्रचलित हैं, किन्तु मान्यताएँ कुछ भी हों, कथाएँ कितनी भी हों, सत्य बस यही है कि होली का उत्साहपूर्ण रंगपर्व ऐसे समय आरम्भ होता है जब सर्दी धीरे धीरे पीछे खिसक रही होती है और गर्मी चुपके से अपने पैर आगे बढ़ाने की ताक में होती है | साथ में वसन्त की खुमारी हर किसी के सर चढ़ी होती है | फिर भला हर कोई मस्ती में भर झूम क्यों न उठेगा | कोई विरह वियोगी ही होगा जो ऐसे मदमस्त कर देने वाले मौसम में भी एक कोने में सूना सूखा और चुपचाप खड़ा रह जाएगा |

अपने पैतृक नगर नजीबाबाद की होली अक्सर याद आ जाती है | हमारे शहर में मालिनी नदी के पार छोटी सी काछियों की बस्ती थी जिसे कछियाना भी कहते थे | ये लोग मूल रूप से सब्ज़ियाँ उगाने का कार्य करते हैं | रंगपंचमी यानी फाल्गुन शुक्ल पंचमी से रात को भोजन आदि से निवृत्त होकर बस्ती के सारे स्त्री पुरुष चौपाल में इकट्ठा हो जाते थे | रात को सारंगी और बाँसुरी से काफी पीलू के सुर उभरने शुरू होते, धीरे धीरे खड़ताल खड़कनी शुरू होती, चिमटे चिमटने शुरू होते, मँजीरे झनकने की आवाज़ें कानों में आतीं और साथ में धुनुकनी शुरू होतीं ढोलकें धमार, चौताल, ध्रुपद या कहरवा की लय पर – फिर धीरे धीरे कंठस्वर उनमें मिलते जाते और आधी रात के भी बाद तक काफी, बिरहा, चैती, फाग, धमार, ध्रुपद, रसिया और उलटबांसियों के साथ ही स्वांग का जो दौर चलता तो अपने अपने घरों में बिस्तरों में दुबके लोग भी अपना सुर मिला देते | हमारे पिताजी को अक्सर वे लोग साथ में ले जाया करते थे और पिताजी की लाडली होने के कारण उनके साथ किसी भी कार्यक्रम में जाने का अवसर हम हाथ से नहीं जाने देते थे | तो जब हम बाप बेटी घर वापस लौटते थे तो वही सब गुनगुनाते और उसकी विषय में चर्चा करते कब में घर की सीढ़ियाँ चढ़ जाते थे हमें कुछ होश ही नहीं रहता था | और ऐसा नहीं था कि उस चौपाल में गाने बजाने वाले लोग कलाकार होते थे | सीधे सादे ग्रामीण किसान होते थे, पर होली की मस्ती जो कुछ उनसे प्रदर्शन करा देती थी वह लाजवाब होता था और इस तरह फ़जां में घुल मिल जाता था कि रात भर ठीक से नींद पूरी न होने पर भी किसी को कोई शिकायत नहीं होती थी, उल्टे फिर से उसी रंग और रसभरी रात का इंतज़ार होता था | तो ऐसा असर होता है इस पर्व में |

और रंग की एकादशी से तो सारे स्कूल कालेजों और शायद ऑफिसेज़ की भी होली की छुट्टियाँ ही हो जाया करती थीं | फिर तो हर रोज़ बस होली का हुडदंग मचा करता था | रंग की एकादशी को हर कोई स्कूल कॉलेज ज़रूर जाता था – अपने दोस्तों और टीचर्स के साथ होली खेले बिना भला कैसा रहा जा सकता था ? और टीचर्स भी बड़े जोश के साथ अपने स्टूडेंट्स के साथ उस दिन होली खेलते थे |

घरों में होली के पकवान बनने शुरू हो जाया करते थे | होलिका दहन के स्थल पर जो अष्टमी के दिन होलिका और प्रहलाद के प्रतीकस्वरूप दो दण्ड स्थापित किये गए थे अब उनके चारों ओर वृक्षों से गिरे हुए सूखे पत्तों, टहनियों, लकड़ियों आदि के ढेर तथा बुरकल्लों की मालाओं आदि को इकठ्ठा किया जाने का कार्यक्रम शुरू हो जाता था | ध्यान ये रखा जाता था कि अनावश्यक रूप से किसी पेड़ को न काटा जाए | हाँ शरारत के लिए किसी दोस्त के घर का मूढा कुर्सी या चारपाई या किसी के घर का दरवाज़ा होली की भेंट चढ़ाने में किसी को कोई आपत्ति नहीं होती थी | और ये कार्य लड़कियाँ नहीं करती थीं | विशेष रूप से हर लड़का हर दूसरे लड़के के घर के दरवाज़े और फर्नीचर पर अपना मालिकाना हक समझता था और होलिका माता को अर्पण कर देना अपना परम कर्त्तव्य तथा पुण्य कर्म समझता था | और इसी गहमागहमी में आ जाता था होलिकादहन का पावन मुहूर्त |

गन्ने के किनारों पर जौ की बालियाँ लपेट कर घर के पुरुष यज्ञ की सामग्री के द्वारा प्रज्वलित होलिका की परिक्रमा करते हुए आहुति देते थे और होलिका की अग्नि में भुने हुए इस गन्ने को प्रसादस्वरूप वितरित करते थे | अगली सुबह होलिका की अग्नि से हर घर का चूल्हा जलता था | रात भर होलिका की अग्नि पर टेसू के फूलों का रंग पकता था जो सुबह सुबह कुछ विशिष्ट परिवारों में भेजा जाता था और बाक़ी बचा रंग बड़े बड़े ड्रमों में भरकर होली के जुलूस में ले जाया जाता था और हर आते जाते को उस रंग से सराबोर किया जाता था | गुनगुना मन को लुभाने वाली ख़ुशबू वाला टेसू के फूलों का रंग जब घर में आता तो पूरा घर ही एक नशीली सी ख़ुशबू से महक उठता |

दोपहर को इधर सब नहा धोकर तैयार होते और उधर होली की ही अग्नि पर बना देसी घी का सूजी का गरमा गरमा हलवा प्रसाद के रूप में हर घर में पहुँचा दिया जाता | हलवे का प्रसाद ग्रहण करके और भोजनादि से निवृत्त होकर नए वस्त्र पहन कर शाम को सब एक दूसरे के घर होली मिलने जाते | अब त्यौहार आता अपने समापन की ओर | नजीबाबाद जैसे सांस्कृतिक विरासत के धनी शहर में भला कोई पर्व संगीत और साहित्य संगोष्ठी से अछूता रहा जाए ऐसा कैसे सम्भव था ? तो रात को संगीत और कवि गोष्ठियों का आयोजन होता जो अगली सुबह छह सात बजे जाकर सम्पन्न होता | रात भर चाय, गुझिया, समोसे, दही भल्ले पपड़ी चाट के दौर भी चलते रहते | यानी रंग की पञ्चमी से जो होली के गान का आरम्भ होता उसका उत्साह बढ़ते बढ़ते होलाष्टक तक अपने शैशव को पार करता हुआ रंग की एकादशी को किशोरावस्था को प्राप्त होकर होली आते आते पूर्ण युवा हो जाता था |

आज जब हर तरफ एक अजीब सी अफरातफरी का माहौल बना हुआ है, एक दूसरे पर जैसे किसी को भरोसा ही नहीं रहा गया है, ऐसे में याद आते हैं वे दिन… याद आते हैं वे लोग… उन्हीं दिनों और उन्हीं लोगों का स्मरण करते हुए, सभी को कल रंग की एकादशी के साथ ही अग्रिम रूप से होली की रंग भरी… उमंग भरी… हार्दिक शुभकामनाएँ… इन पंक्तियों के साथ…

होली है, हुडदंग मचा लो, सारे बन्धन तोड़ दो |

और नियम संयम की सारी आज दीवारें तोड़ दो ||

लाल पलाश है फूल रहा और आग लगी हर कोने में

कैसा नखरा, किसका नखरा, आज सभी को रंग डालो ||

माना गोरी सर से पल्ला खिसकाके देगी गाली

तीखी धार कटारी की है, मत समझो भोली भाली |

पर टेसू के रंग में इसको सराबोर तुम आज करो

शहद पगी गाली के बदले मुख गुलाल से लाल करो ||

पूरा बरस दबा रक्खी थी साध, उसे पूरी कर लो

जी भरके गाली दो, मन की हर कालिख़ बाहर फेंको ||

नहीं कोई है रीत, नहीं है कोई बन्दिश होली में

मन को जिसमें ख़ुशी मिले, बस ऐसी तुम मस्ती भर लो ||

जो रूठा हो, आगे बढ़के उसको गले लगा लो आज

बाँहों में भरके आँखों से मन की तुम कह डालो आज |

शरम हया की बात करो मत, बन्धन ढीले आज करो

नाचो गाओ धूम मचाओ, पिचकारी में रंग भर लो ||

गोरी चाहे प्यार के रंग में रंगना, उसका मान रखो

कान्हा चाहे निज बाँहों में भरना, उसका दिल रख लो |

डालो ऐसा रंग, न छूटे बार बार जो धुलकर भी

तन मन पुलकित हो, कुछ ऐसा प्रेम प्यार का रंग भर दो ||

________________________कात्यायनी डॉ पूर्णिमा शर्मा 

 

 

bookmark_borderEight days of Holashtak

Eight days of Holashtak 

होलाष्टक के आठ दिन 

कल यानी रविवार 21 मार्च को प्रातः सात बजकर सत्ताईस मिनट के लगभग विष्टि करण (भद्रा) और आयुष्मान योग में फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि का आरम्भ हो रहा है |

Dr. Purnima Sharma
Dr. Purnima Sharma

इसी समय से होलाष्टक आरम्भ हो जाएँगे जो रविवार 28 मार्च को होलिका दहन के साथ ही समाप्त हो जाएँगे | 28 मार्च को उदयव्यापिनी पूर्णिमा सूर्योदय से पूर्व तीन बजकर सत्ताईस मिनट आरम्भ होकर अर्द्धरात्रि में बारह बजकर सत्रह मिनट तक रहेगी | इसी मध्य गोधूलि वेला में सायं छह बजकर सैंतीस मिनट से रात्रि आठ बजकर छप्पन मिनट तक होलिका दहन का मुहूर्त है, और उसके बाद रंगों की बरसात के साथ ही फाल्गुन कृष्ण प्रतिपदा से होलाष्टक समाप्त हो जाएँगे |

फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से आरम्भ होकर पूर्णिमा तक की आठ दिनों की अवधि होलाष्टक के नाम से जानी जाती है और चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को होलाष्टक समाप्त हो जाते हैं | होलाष्टक आरम्भ होने के साथ ही होली के पर्व का भी आरम्भ हो जाता है | इसे “होलाष्टक दोष” की संज्ञा भी दी जाती है और कुछ स्थानों पर इस अवधि में बहुत से शुभ कार्यों की मनाही होती है | विद्वान् पण्डितों की मान्यता है कि इस अवधि में विवाह संस्कार, भवन निर्माण आदि नहीं करना चाहिए न ही कोई नया कार्य इस अवधि में आरम्भ करना चाहिए | ऐसा करने से अनेक प्रकार के कष्ट, क्लेश, विवाह सम्बन्ध विच्छेद, रोग आदि अनेक प्रकार की अशुभ बातों की सम्भावना बढ़ जाती है | किन्तु जन्म और मृत्यु के बाद किये जाने वाले संस्कारों के करने पर प्रतिबन्ध नहीं होता |

फाल्गुन कृष्ण अष्टमी को होलिका दहन के स्थान को गंगाजल से पवित्र करके होलिका दहन के लिए दो दण्ड स्थापित किये जाते हैं, जिन्हें होलिका और प्रह्लाद का प्रतीक माना जाता है | फिर उनके मध्य में उपले (गोबर के कंडे), घास फूस और लकड़ी आदि का ढेर लगा दिया जाता है | इसके बाद होलिका दहन तक हर दिन इस ढेर में वृक्षों से गिरी हुई लकड़ियाँ और घास फूस आदि डालते रहते हैं और अन्त में होलिका दहन के दिन इसमें अग्नि प्रज्वलित की जाती है | ऐसा करने का कारण सम्भवतः यह रहा होगा कि होलिका दहन के अवसर तक वृक्षों से गिरी हुई लकड़ियों और घास फूस का इतना बड़ा ढेर इकट्ठा हो जाए कि होलिका दहन के लिए वृक्षों की कटाई न करनी पड़े |

Holika Dahan
Holika Dahan

पौराणिक मान्यता ऐसी भी है कि तारकासुर नामक असुर ने जब देवताओं पर अत्याचार बढ़ा दिए तब उसके वध का एक ही उपाय ब्रह्मा जी ने बताया, और वो ये था कि भगवान शिव और पार्वती की सन्तान ही उसका वध करने में समर्थ हो सकती है | तब नारद जी के कहने पर पार्वती ने शिव को प्राप्त करने के लिए घोर तप का आरम्भ कर दिया | किन्तु शिव तो दक्ष के यज्ञ में सती के आत्मदाह के पश्चात ध्यान में लीन हो गए थे | पार्वती से उनकी भेंट कराने के लिए उनका उस ध्यान की अवस्था से बाहर आना आवश्यक था | समस्या यह थी कि जो कोई भी उनकी साधना भंग करने का प्रयास करता वही उनके कोप का भागी बनता | तब कामदेव ने अपना बाण छोड़कर भोले शंकर का ध्यान भंग करने का दुस्साहस किया | कामदेव के इस अपराध का परिणाम वही हुआ जिसकी कल्पना सभी देवों ने की थी – भगवान शंकर ने अपने क्रोध की ज्वाला में कामदेव को भस्म कर दिया | अन्त में कामदेव की पत्नी रति के तप से प्रसन्न होकर शिव ने कामदेव को पुनर्जीवन देने का आश्वासन दिया | माना जाता है कि फाल्गुन शुक्ल अष्टमी को ही भगवान शिव ने कामदेव को भस्म किया था और बाद में रति ने आठ दिनों तक उनकी प्रार्थना की थी | इसी के प्रतीक स्वरूप होलाष्टक के दिनों में कोई शुभ कार्य करने की मनाही होती है |

वैसे व्यावहारिक रूप से पंजाब और उत्तर प्रदेश के कुछ भागों में होलाष्टक का विचार अधिक किया जाता है, अन्य अंचलों में होलाष्टक का कोई दोष प्रायः नहीं माना जाता |

अतः, मान्यताएँ चाहें जो भी हों, इतना निश्चित है कि होलाष्टक आरम्भ होते ही मौसम में भी परिवर्तन आना आरम्भ हो जाता है | सर्दियाँ जाने लगती हैं और मौसम में हल्की सी गर्माहट आ जाती है जो बड़ी सुखकर प्रतीत होती है | प्रकृति के कण कण में वसन्त की छटा तो व्याप्त होती ही है | कोई विरक्त ही होगा जो ऐसे सुहाने मदमस्त कर देने वाले मौसम में चारों ओर से पड़ रही रंगों की बौछारों को भूलकर ब्याह शादी, भवन निर्माण या ऐसी ही अन्य सांसारिक बातों के विषय में विचार करेगा | जनसाधारण का रसिक मन तो ऐसे में सारे काम काज भुलाकर वसन्त और फाग की मस्ती में झूम ही उठेगा…

इन सभी मान्यताओं का कोई वैदिक, ज्योतिषीय अथवा आध्यात्मिक महत्त्व नहीं है, केवल धार्मिक आस्थाएँ और लौकिक मान्यताएँ ही इस सबका आधार हैं | तो क्यों न होलाष्टक की इन आठ दिनों की अवधि में स्वयं को सभी प्रकार के सामाजिक रीति रिवाज़ों के बन्धन से मुक्त करके इस अवधि को वसन्त और फाग के हर्ष और उल्लास के साथ व्यतीत किया जाए…

रंगों के पर्व की अभी से रंग और उल्लास से भरी हार्दिक शुभकामनाएँ…

_____________कात्यायनी डॉ पूर्णिमा शर्मा

 

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Mahashivaraatri Parva

महाशिवरात्रि पर्व

ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् |

Dr. Purnima Sharma
Dr. Purnima Sharma

उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्तीयमामृतात् ||

आज समस्त हिन्दू समाज भगवान शिव की पूजा अर्चना का पर्व महाशिवरात्रि का पावन पर्व मना रहा है | प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि के व्रत का पालन किया जाता है, जिसे शिव पार्वती के विवाह का अवसर माना जाता है – अर्थात मंगल के साथ शक्ति का मिलन | कुछ पौराणिक मान्यताएँ इस प्रकार की भी हैं कि इसी दिन महादेव के विशालकाय स्वरूप अग्निलिंग से सृष्टि का आरम्भ हुआ था | जो भी मान्यताएँ हों, महाशिवरात्रि का पर्व समस्त हिन्दू समाज में बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है | इसी दिन ऋषि बोधोत्सव भी है, जिस दिन आर्यसमाज के प्रवर्तक स्वामी दयानन्द को सच्चे शिवभक्त का ज्ञान प्राप्त हुआ था और उनके हृदय से उदगार फूटे थे कि सच्चा शिव किसी मन्दिर या स्थान विशेष में विराजमान मूर्ति में निवास नहीं करता, अपितु वह इस सृष्टि के प्राणिमात्र में विराजमान है, और इसलिए प्राणिमात्र की सेवा ही सच्ची ईश्वरभक्ति है |

आज दिन में दो बजकर 41 मिनट के लगभग विष्टि (भद्रा) करण और सिद्ध योग में चतुर्दशी तिथि का आगमन होगा जो कल दिन में लगभग तीन बजे तक रहेगी और उसके बाद अमावस्या तिथि आरम्भ हो जाएगी | अतः निशीथ काल की पूजा और अभिषेक इसी दिन मध्य रात्रि में बारह बजकर छह मिनट से लेकर बारह बजकर पचपन मिनट तक किया जाएगा | जिन लोगों को रात्रि में अभिषेक नहीं करना है और दिन में ही व्रत रखकर रात्रि में उसका पारायण करना चाहते हैं वे लोग भी इसी दिन व्रत रख सकते हैं | लेकिन जो लोग दिन में कुछ ही देर के लिए व्रत रखना चाहते हैं उन्हें कल दिन में व्रत रखकर अपराह्न तीन बजे तक व्रत का पारायण कर देना चाहिए |

जो लोग पूर्णतः वैदिक विधि विधान के साथ भगवान शंकर के चार अभिषेक करते हैं तो उनके लिए प्रथम प्रहर के अभिषेक का समय है आज सिंह लग्न में सायं 6:27 से आरम्भ होकर तुला लग्न में रात्रि 9:29 तक, द्वितीय प्रहर के अभिषेक का समय तुला लग्न में रात्रि 9:29 से आरम्भ होकर वृश्चिक लग्न में अर्द्ध रात्रि 12:31 तक, तृतीय प्रहर के अभिषेक का समय वृश्चिक लग्न में अर्द्ध रात्रि 12:31 से आरम्भ होकर कल धनु लग्न में सूर्योदय से पूर्व 3:32 तक और चतुर्थ प्रहर के अभिषेक का समय कल सूर्योदय से पूर्व धनु लग्न में 3:32 से आरम्भ होकर कुम्भ लग्न में प्रातः 6:34 तक रहेगा |

भगवान शिव की पूजा अर्चना जहाँ होगी वहाँ आनन्द और आशीर्वाद की वर्षा तो निश्चित रूप से होगी ही | शिव को तो कहा ही “औघड़दानी” जाता है | शिवरात्रि के पर्व के साथ बहुत सी कथाएँ भी जुड़ी हुई हैं और उन सभी कथाओं में कुछ न कुछ प्रेरणादायक उपदेश भी निहित हैं | लेकिन हमारे विचार से :

जन जन को शिव का रूप और कण कण को शंकर समझेंगे |

तो “शं करोतीति शंकरः” खुद ही सार्थक हो जाएगा ||

अर्थात – जो शं यानी शान्ति प्रदान करे वह शंकर – किन्तु शंकर भी तभी जन जन को शान्ति और कल्याण प्रदान करेंगे जब हम प्रकृति के कण कण में – प्रत्येक जन मानस में – शंकर का अनुभव करेंगे और साथ ही प्रकृति को तथा प्रकृति के मध्य निवास कर रहे किसी भी प्राणी को किसी प्रकार की हानि न पहुँचाने का संकल्प लेंगे – तभी वास्तव में शिवाराधन सार्थक माना जाएगा और तभी हमें अनुभव होगा कि हमारा रोम रोम प्रसन्नता से प्रफुल्लित होकर ताण्डव कर रहा है जो कि समस्त प्रकार की दुर्भावनाओं से मोक्ष तथा कल्याण का – शान्ति का प्रतीक होगा | साथ ही एक और महत्त्वपूर्ण तथ्य, शिवरात्रि अमावस्या के साथ आती है – यानी चन्द्रमा की नव प्रस्फुटित शीतल किरणों को आगे करके आती है – जो एक प्रकार से अन्धकार अर्थात सभी प्रकार के अज्ञान और कुरीतियों तथा दुर्भावनाओं पर प्रकाश अर्थात ज्ञान और सद्भावनाओं की विजय का भी प्रतीक है |

भगवान् शिव की महिमा का वर्णन तथा उनकी प्रार्थना के लिए बहुत सारे स्तोत्र और मन्त्र हमारे ऋषि मुनियों ने उच्चरित किये हैं – जिनमें “शिवाष्टक” भी अनेक प्रकार के हैं, जिनके भावार्थ भी प्रायः सामान ही हैं | उन्हीं में से आज प्रस्तुत है एक “शिवाष्टक”…

प्रभुमीशमनीशमशेषगुणं गुणहीनमहीश गरलाभरणम् |

रण निर्जित दुर्जय दैत्यपुरं प्रणमामि शिवं शिवकल्पतरुम् ||1||

गिरिराज सुतान्वित वामतनुं तनुनिन्दितराजित कोटिविधुम् |

विधिविष्णुशिरोधृत पादयुगं प्रणमामि शिवं शिवकल्पतरुम् ||2||

शशलान्च्छितरंजित सन्मुकुटं कटिलम्बितसुन्दर कृत्तिपटम् |

सुरशैवलिनी कृतपूतजटं प्रणमामि शिवं शिवकल्पतरुम् ||3||

नयनत्रयभूषित चारुमुखं मुखपद्मपराजित कोटिविधुम् |

विधुखण्डविमण्डित भालतटं प्रणमामि शिवं शिवकल्पतरुम् ||4||

वृषराज निकेतनमादि गुरुं गरलाशनमाजिविषाणधरम् |

प्रमथाधिपसेवक रन्जनकं प्रणमामि शिवं शिवकल्पतरुम् ||5||

मकरध्वजमत्तमतंग हरं करिचर्मगनागविबोधकरम् |

वरमार्गणशूलविषाणधरं प्रणमामि शिवं शिवकल्पतरुम् ||6||

जगदुद्भवपालननाशकरं त्रिदिवेशशिरोमणि धृष्टपदम् |

प्रियमानवसाधुजनैकगतिं प्रणमामि शिवं शिवकल्पतरुम् ||7||

अनाथं सुदीनं विभो विश्वनाथं पुनर्जन्मदु:खात् परित्राहि शम्भो |

भजतोखिलदुःख समूहहरं प्रणमामि शिवं शिवकल्पतरुम् ||8||

भाव है कि देवाधिदेव, समस्त गुणों से परे, विषपान करने वाले, दैत्यों का नाश करने वाले कल्पतरु के सामान सबकी मनोकामना पूर्ण करने वाले, जिनके वाम भाग में शैलपुत्री विराजमान हैं, ब्रह्मा और विष्णु भी जिनके चरणवन्दना करते हैं, जिनके मस्तक पर चन्द्रमा का मुकुट सुशोभित है, जटाओं में गंगा को धारण करने वाले, त्रिनेत्र, वृषभारूढ़, कामदेव का मर्दन करने वाले, समस्त चराचर का उद्भव, पालन और संहार करने वाले, पुनर्जन्म के कष्ट से मुक्ति प्रदान करने वाले, दीनों और अनाथों के नाथ विश्वनाथ शिव की हम वन्दना करते हैं… भगवान् शिव सबकी मनोकामनाओं को पूर्ण करें…

अस्तु, हम सभी प्रकृति के कण कण में शंकर का वास मानकर सभी के प्रति सद्भावना रखें तथा समाज में व्याप्त अनेक प्रकार की कुरीतियों पर विजय प्राप्त करने का प्रयास करें… इसी कामना के साथ सभी को महाशिवरात्रि पर्व की अनेकशः हार्दिक शुभकामनाएँ… भगवान शंकर सभी के जीवन में शान्ति और कल्याण की पावन गंगा प्रवाहित करें…

_________________कात्यायनी डॉ पूर्णिमा शर्मा

 

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Mera Pyara Sehajan 

मेरा प्यारा सहजन

(रेखा अस्थाना जी का संस्मरण… जब हम कोई वृक्ष रोपते हैं तो उसके साथ अपनी सन्तान के जैसा मोह हो जाना स्वाभाविक ही है… उसके फलने फूलने में कोई कमी रह

Rekha Asthana
Rekha Asthana

जाए तो मन उदास हो जाता है – उसी तरह जैसे अपनी सन्तान को कष्ट में देखकर होता है, और जब वो फलता फूलता है तो मन उसी प्रकार प्रफुल्लित हो उठता है जैसे अपनी सन्तान को सुखी देखकर होता है… यही भाव रेखा जी के इस संस्मरण में हैं… रेखा अस्थाना जी रिटायर्ड अध्यापिका हैं तथा हिन्दी की लब्धप्रतिष्ठ लेखिका और कवयित्री होने के साथ ही पर्यावरण के लिए भी कार्य कर रही हैं… डॉ पूर्णिमा शर्मा)

मेरा प्यारा सहजन

कवि हृदय की कमी आपको बता दूँ, वे कभी अपने मन के उदगार छिपा नहीं पाते | दुख हो या सुख, वे दूसरों को बताएँगे जरूर | एक तरह से ढोल होते हैं वे | जब तक बता न दें बेचैन रहते हैं वे | कोई सुनने वाला न मिले तो कागज पर ही मन की बात उतार देते हैं |

   अब आइए मुद्दे की बात पर | मैं भी कुछ ऐसी ही हूँ | सारी हृदय की बातें जब तक कह न दूँ पेट में गैस बन जाती है | हुआ ऐसा कि मुझे पेड़ पौधों से बहुत लगाव है | बचपन से ही इनके बीच रहती आई हूँ | पेड़-पौधे की हर अवस्था को बारीकी से देखती व समझती हूँ | और जिस तरह बच्चे की हर क्रियाकलाप में आप उसे आशीष देते हैं मैं अपने इन पेड़ों को देती हूँ |

आज से लगभग ढाई बरस पूर्व मैंने एक सहजन का पौधा रोपा था | माली से ढाई सौ में खरीद कर | उसके पूर्व कई बार अनेक कटिंग सहजन की लगाई थी पर कोई न उगा |

यह लगाया हुआ पेड़ बड़ी तीव्र गति से पूरा वृक्ष बन गया | इसकी बढ़त देखकर मन झूम उठता | फिर इसकी छँटाई भी करवाई | पर ढाई बरस में फूला नहीं, मन उदास हो गया | भगवान से प्रार्थना कर रही थी |

अचानक फरवरी 2021 के प्रथम सप्ताह में जब प्रातः उठकर अपने छज्जे से सूर्यदेव को प्रणाम कर रही थी और दृष्टि सहजन के गाछ पर गयी तो फुनगियों पर कुछ गुलाबी मिश्रित नारंगी रंग के कलियों के गुच्छे दिखाई दिए |

   मन में अचानक उछाह उठा | जल्दी से भीतर जाकर चश्मा उठा लाई और लगा कर बड़े ही प्यार से निहारने लगी और ईश्वर को कोटि- कोटि धन्यवाद दिया | सच बताऊँ कितनी खुशी हुई जैसे प्रथम बार किसी को माँ बनने की खबर पता चलती है उतनी ही खुशी इन कलियों को देखकर हुई |

मुझे अपने पोते को पहली बार जब देखकर मन प्रसन्न हुआ उसी प्रकार इन कलियों को निहार कर हुआ | अब तो रोज ही कलियों को निहारती हूँ और इनसे फूल बनने की प्रक्रिया भी देख रही हूँ | दोनों हाथ जोड़कर ईश्वर से आशीष माँगती हूँ | खूब फलो फूलो मेरे सहजन  |तुम दुनिया की बुरी नज़र से बचे रहो|

   इस प्रक्रिया को किसी को कह न पाई सो लिख दिया ताकि आप सब पढ़ सकें | और हाँ मेरे सहजन को आशीर्वाद जरूर देना…

रेखा अस्थाना

 

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Vasant Panchami

वसन्त पञ्चमी

नमस्कार ! जैसा कि सभी जानते हैं कि सोलह फरवरी को वसन्त पञ्चमी का उल्लासमय पर्व है… तो सर्वप्रथम सभी को वसन्त पञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाएँ… वास्तव में बड़ी मदमस्त कर देने वाली होती है ये रुत… वृक्षों की शाख़ों पर चहचहाते पक्षियों का कलरव ऐसा लगता है मानों पर्वतराज की सभा में मुख्य नर्तकी के आने से पूर्व उसके

Vasant Panchami
Vasant Panchami

सम्मान में वृन्दगान चल रहा हो… हमें अक्सर याद आ जाता है कोटद्वार में अपने कार्यकाल के दौरान सिद्धबली मन्दिर के बाहर मुंडेर पर बैठ जाया करते थे अकेले… अपने आपमें खोए से… नीचे कल कल छल छल बहती खोह का मधुर संगीत मन को मोह लिया करता था… मन्दिर के चारों तरफ़ और ऊपर नीचे देखते तो हरियाली की चादर ताने और रंग बिरंगे पुष्पों से ढकी ऊँची नीची पहाड़ियाँ ऐसी जान पड़तीं… मानों अपने तने हुए उभरे कुचों पर बहुरंगी कंचुकियाँ कसे… हरितवर्णी उत्तरीयों से अपनी कदलीजँघाओं को हल्के से आवृत किये… कोई काममुग्धा नर्तकी नायिका… प्रियतम को मौन निमन्त्रण दे रही हो… उसे अभी कहाँ होश पर्वतराज की सभा में जा नृत्य करने का… अभी तो कामक्रीड़ा के पश्चात् कुछ अलसाना है… और उसके पश्चात्… और अधिक पुष्पों की जननी बनना है… वसन्त के आगमन पर उसे स्वयं को पुष्पहारों से और भी अलंकृत करना है… ताकि पिछली रात के सारे चिह्न विलुप्त हो जाएँ… और ऋतुराज वसन्त के लिये वो पुनः अनछुई कली जैसी बन जाए… ऐसा मदमस्त होता है वसन्त का मौसम… तभी तो कहते हैं इसे ऋतुओं का राजा… इसी उपलक्ष्य में प्रस्तुत हैं कुछ काव्य रचनाएँ ऋतुराज के सम्मान में… जो लिखी हैं हमारी सदस्यों ने… वसन्त पञ्चमी को क्योंकि माँ वाणी का भी प्रादुर्भाव माना जाता है, इसलिए “काव्य संकलन” के आज के अंक का आरम्भ हम माँ वाणी की वन्दना के साथ ही कर रहे हैं… समस्त प्रकार के ज्ञान विज्ञान अधिष्ठात्री देवी माँ वाणी… जो कुन्द के श्वेत पुष्प, धवल चन्द्र, श्वेत तुषार तथा धवल हार के सामान गौरवर्ण हैं… जो शुभ्र वस्त्रों से आवृत हैं… हाथों में जिनके उत्तम वीणा सुशोभित है… जो श्वेत पद्मासन पर विराजमान हैं… ब्रह्मा विष्णु महेश आदि देव जिनकी वन्दना करते हैं… तथा जो समस्त प्रकार की जड़ता को दूर करने में समर्थ हैं… ऐसी भगवती सरस्वती हमारा उद्धार करें तथा जन जन के हृदयों में नवीन आशा और विश्वास का संचार करें… प्रस्तुत पंक्तियों की जिसकी रचनाकार हैं पूजा श्रीवास्तव…

माता सरस्वती कर दे उजाला

जीवन में मेरे हे दीन दयाला

पियरी पहन मां सेज विराजे, देखूं तुझे और कुछ न साजे

पूजा श्रीवास्तव
पूजा श्रीवास्तव

वीणा संग मां हंस की सवारी, दरश करे ये दुनिया सारी

अपनी दया करो माता हमपे

सद्गुण सत्कर्म हो हम सबके

ऋतु छायी हरियाली सौन्दर्य ऐसा, मन को लुभाए मन मोहक जैसा

कुसुमित हो हर उपवन महके, मन मेरा देख के रह रह बहके

सर्वस्व मेरा तुझको समर्पण

मेरी बुराई का करो तुम तर्पण

मांगू मां तुझसे एक ही वर दो, हम कवियों की लेख अमर हो

विद्या बुद्धि और ज्ञान से भर दो, अपनी चरण में हमको जगह दो

लेखनी को मेरी अपनी कृपा दे

जब भी उठे चले सच के पथ पे

______________पूजा श्रीवास्तव

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वसन्त के स्वागत हित प्रस्तुत गीत रचा है रेखा अस्थाना जी ने… मदिराए वसन्त को देखकर नायिका मदमस्त हो थिरक उठती है… ऐसे में भला प्रियतम की याद उसे क्यों नहीं आएगी…

आ गया है ऋतु मेरा वसन्त |

धड़क धड़क धड़क जाए क्यों आज मेरा मन |

देखो सखी क्या आ गया है द्वार पर वसन्त…

स्वागत में मैंने उसके ओढ़ ली है पीली चुनर,

माथे पर अपने सजा ली है सुर्ख फूलों की झूमर |

Rekha Asthana
Rekha Asthana

धड़क धड़क धड़के है क्यों आज मेरा मन,

देखो सखी क्या आ गया मेरा प्रिय वसन्त…

होकर उसकी याद में मदमस्त बावरी,

कर ली सुगन्धि की मैंने तो पूरी शीशी ही खाली |

अब देखो चहुँ ओर बहने लगी है मलयज की तीखी गंध

थिरक रहें हैं पाँव मेरे, बस में नहीं रहा अब तो मेरा मन |

होकर बावरी गाऊँ गीत मैं, नाचूँ सनसनानन सन

धड़क धड़क धड़क रहा आज सखी मन…

बौराये वृक्ष देते हैं देखो, खुद ही निमन्त्रण

आ जाओ न प्रिय एक बार तुम, करने को आलिंगन |

पगलाई कोयलिया का नहीं, बस में रहा मन

देखो सखी क्या आ गया फिर से मेरा प्रिय वसन्त…

धड़क धड़क धड़क रहा है आज मेरा मन…

सुन्दर छटा अपनी देखकर, इतराए धरा का मन,

किस तरह करूँ आकर्षित तुमको,

गढ़ने लगी अब तो मैं भी प्रेम का ही छंद ||

धड़क धड़क धड़क रहा है क्यों आज मेरा मन

देखो सखी क्या आ गया मेरा प्रिय वसन्त…

____________________रेखा अस्थाना

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और अब एक अन्य ख़ूबसूरत रचना वसन्त के ही स्वागत में… समूची धरा जब हरीतिमा की चादर ओढ़े जन जन को मोहित कर रही हो ऐसे में प्रियतम का पन्थ निहारती नायिका की मनःस्थिति का बहुत सुन्दर चित्रण किया है शशिकिरण श्रीवास्तव ने…

आया बसंत लहराई सरसों, प्रकृति ने किया श्रृंगार

रंग बिरंगी ओढ़नी से ख़ुद को लिया सँवार ||

बागों में कूक रही है कोयल, आंगन में नाचे मोर

शशिकिरण श्रीवास्तव
शशिकिरण श्रीवास्तव

पीले पीले पुष्प खिलें हैं देखो चारों ओर ||

कण कण में मस्ती छाई है, अब आया मधुमास

बौराया यह मस्त महीना ले आया उल्लास ||

तन मन मेरा भीग गया जब ठंढी चली बयार

देखूं मैं चारों तरफ वसंत ले आया प्यार ||

देखकर मन मुग्ध हुई मैं देखूं बारंबार

आया वसंत झूमकर लेकर अपना प्यार ||

पतझड़ के कोख से होता हरियाली का जन्म

सब कुछ खोकर भी प्रकृति का उल्लास ना होता कम ||

अब आ भी जाओ साँवरे रही तेरी पंथ निहार

मिलकर रास रचाऊं मैं, तरस रहा संसार ||

___________________शशि किरन श्रीवास्तव

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डॉ बृजबाला शर्मा… हिन्दी की लब्धप्रतिष्ठ कवयित्री… जिस प्रकृति ने हमें सब कुछ दिया, उसी का दोहन हम निरन्तर करते चले आ रहे हैं, ऐसे में कवयित्री का मन व्यथित है और वो बोल उठी है – मैं आज कैसे फाग सुनाऊँ… रचना का शीर्षक है “फाग का राग”…

सखी मैं आज कैसे फाग सुनाऊँ, विकल विकल ज़न ज़न के मन |

नयनों भरा जब हो उनके नीर, निज को उलझन में पाऊँ ll

सखी मैं आज कैसे फाग सुनाऊँ…

प्रकृति की क्या है प्रकृति, कभी भी समझ नहीं पाती |

डॉ बृजबाला शर्मा
डॉ बृजबाला शर्मा

मोहिनी बन छाई वसुधा पर, अभिराम छटा आँखों में समाऊँ ||

सखी मैं आज कैसे फाग सुनाऊँ…

मोहन से दोहन की यात्रा, मनुज कर्म का ही है लेखा |

लोभ सुरसा का उदर भरे न, असमंजस में घिरे हुए पाऊँ ||

सखी मैं आज कैसे फाग सुनाऊँ…

हरीतिम मखमली धरा के युग – युग ऋणी रहे हम |

समय माँग करे है हमसे, वैभव बन पुनः बिछ जाऊँ ||

सखी मैं आज कैसे फाग सुनाऊँ…

चेतना होगा मनु जाति को कहर बरपे न कभी ऐसा |

सृष्टि निर्मित साध्य बने सब, पुष्प पराग बन खिल जाऊँ ||

सखी मैं आज कैसे फाग सुनाऊँ…

___________________डॉ बृजबाला शर्मा

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माँ वाणी के वन्दन के साथ वसन्त के उल्लास का बड़ा सुन्दर शब्द चित्र प्रस्तुत किया है डॉ रश्मि चौबे ने… शीर्षक है “देखो फिर आ गया वसंत”…

देखो फिर आ गया वसन्त, जिन्दगी में भरने को रंग |

सरस्वती माँ ने वीणा बजाई,

चारों ओर मंत्रोच्चार की आवाज आई |

पीले परिधानों में सज गयी सखियाँ,

पीले पकवानों से भर गयीं थालियाँ |

वीणा की झंकार के संग देखो फिर आ गया वसन्त |

रश्मि चौबे
रश्मि चौबे

धरती ने पहनी फूलों की चुनरिया,

मन में भरी उमंगों की गगरिया,

वसुंधरा चलती मदमस्त यौवन से भर उल्लास,

पवन भी मन्द-मन्द सुनाता अपना राग,

लताएं लेती अंगडाई, छत पर मीठी धूप है आई,

हरियाली छायी चहुं ओर,

अब नाचने लगा है मन का मोर, देखो फिर आ गया वसन्त |

वसंतोत्सव के साथ मदनोत्सव है आया,

फूलों के आदान-प्रदान का मौसम छाया,

शहनाई बजाता प्यार बरसात चहुं ओर,

जीवन को रंगों से करेगा सराबोर |

देखो फिर  आया वसंत, जिंदगी में भरने को रंग |

___________________डॉ रश्मि चौबे

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और अब, ऋतुराज के सम्मान में कुछ पंक्तियाँ हमारी ओर से भी… शीर्षक है “आया वसन्त, आया वसन्त”…

आया वसन्त आया वसन्त, लो फिर से मदिराया वसन्त |

वसुधा के कोने कोने में छाया वसन्त छाया वसन्त ||

लो फिर से है आया वसन्त, लो फिर से मुस्काया वसन्त |

हरियाली धरती को मदमस्त बनाता लो आया वसन्त ||

और अंग अंग में मधु की मस्त बहारों सा छाया वसन्त |

आया वसन्त, आया वसन्त, लो फिर से मदिराया वसन्त ||

मुरझाई डाली लहक उठी, फूलों की बगिया महक उठी |

सरसों फूली अम्बुवा फूले, कोयल मधुस्वर में चहक उठी ||

Dr. Purnima Sharma
Dr. Purnima Sharma

वन उपवन बाग़ बगीचों में पञ्चम सुर में गाया वसन्त |

आया वसन्त, आया वसन्त, लो फिर से मदिराया वसन्त ||

पपीहा बंसी में सुर फूँके, और डार डार महके फूले |

है सजा प्रणय का राग, हरेक जड़ चेतन का है मन झूमे ||

लो मस्ती का है रास रचाता महकाता आया वसन्त |

आया वसन्त, आया वसन्त, लो फिर से मदिराया वसन्त ||

भंवरा गाता गुन गुन गुन गुन, कलियों से करता अठखेली |

और प्रेम पगे भावों से मन में उनके हूक उपज उठती ||

फिर मस्ती का है राग सुनाता लहराता आया वसन्त |

आया वसन्त, आया वसन्त, लो फिर से मदिराया वसन्त ||

धरती ने पाया नव यौवन, उन्मत्त हो उठे चरन चरन |

छवि देख निराली मधुऋतु की रह गए खुले के खुले नयन |

नयनों की गागर में छवि का सागर भर छलकाया वसन्त ||

आया वसन्त, आया वसन्त, लो फिर से मदिराया वसन्त ||

ऋतु ने नूतन श्रृंगार किया, नैनों में भर अनुराग दिया |

और कामदेव ने एक बार फिर चढ़ा धनुष पर बाण दिया |

तब पीत पुष्प से सजी धरा संग फिर से बौराया बसन्त ||

आया वसन्त, आया वसन्त, लो फिर से मदिराया वसन्त ||

माँ वाणी की उपासना के साथ ही वासन्ती हवाओं से सबके मनों को प्रफुल्लित करते हुए ऋतुराज वसन्त के स्वागत हित प्रस्तुत इस काव्य संकलन के साथ ही वसन्त पञ्चमी की सभी को एक बार पुनः हार्दिक शुभकामनाएँ…

____________डॉ पूर्णिमा शर्मा