Kalash Sthapna in Navratri Festival
कलश स्थापना और नवरात्र
देवी प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद, प्रसीद मातर्जगतोSखिलस्य |
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं, त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य ||
रंगों का पर्व होली तो सम्पन्न हो चुका है – यानी होली तो “हो ली”… अब चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी तेरह अप्रैल मंगलवार से आनन्द नामक सम्वत्सर 2078 का आरम्भ होने जा रहा है और इस दिन से समस्त हिन्दू सम्प्रदाय में हर घर में माँ भगवती की पूजा अर्चना का दश दिवसीय उत्सव साम्वत्सरिक नवरात्र के रूप में आरम्भ हो जाएगा जो इक्कीस अप्रैल को भगवान श्री राम के जन्मदिवस रामनवमी के साथ सम्पन्न होगा | कर्नाटक एवम् आन्ध्र में उगडी और महाराष्ट्र का गुडी पर्व भी इसी दिन है | साथ ही चौदह अप्रैल को बैसाखी, मेष संक्रान्ति अर्थात सूर्य का मेष राशि में संक्रमण तथा तमिलनाडु में मनाया जाने वाला चैत्री विशु के पर्व और पन्द्रह अप्रैल को पौहिला बैसाख भी है | सर्वप्रथम सभी को उगडी, गुडी पर्व, बैसाखी, पौहिला बैसाख, चैत्री विशु और साम्वत्सरिक नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएँ…
कुछ गणनाओं के अनुसार “आनन्द” नामक सम्वत्सर विलुप्त होने के कारण सीधा “राक्षस” नाम के सम्वत्सर का ही आरम्भ होगा चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को और कुछ गणनाओं के अनुसार “आनन्द” सम्वत्सर विलुप्त नहीं हुआ है और इसी सम्वत्सर का आरम्भ होने जा रहा है | ये सब वैदिक ज्योतिष की गणनाओं का विषय है, जो वास्तव में बहुत जटिल प्रक्रिया है और इसकी गणना गुरु यानी बृहस्पति के गोचर के आधार पर की जाती है | इस विषय में फिर कभी चर्चा करेंगे | अभी हम इस विस्तार में न जाते हुए दूसरे मत को ही मान रहे हैं – जिसके अनुसार “प्लव” नामक शक संवत 1943 तथा “प्रमादी” नामक सम्वत्सर की समाप्ति के बाद अब “आनन्द” नामक विक्रम सम्वत 2078 चलेगा और संकल्पादि में इसी का उच्चारण किया जाएगा |
यों बारह अप्रैल को प्रातः आठ बजकर एक मिनट के लगभग वृषभ लग्न में प्रतिपदा तिथि का आरम्भ होने के कारण इसी समय से नव सम्वत्सर का भी आरम्भ हो जाएगा | इस समय किन्स्तुघ्न करण और वैधृति योग होगा, तथा सूर्य और चन्द्र दोनों रेवती नक्षत्र पर समान अंशों पर होने के कारण शुभ योग बना रहे होंगे तथा साथ ही बुधादित्य योग भी होगा | लेकिन, क्योंकि उदयकाल में प्रतिपदा तिथि नहीं है इसलिए तेरह अप्रैल से ही सम्वत्सर का आरम्भ माना जाएगा |
इस वर्ष का राजा, मन्त्री तथा वर्षा का अधिकार मंगल के पास है | वित्त मन्त्रालय गुरु अर्थात बृहस्पति को प्राप्त हुआ है | धान्येश यानी फसलों का स्वामी बुध है, रसेश यानी सभी प्रकार के रसों के स्वामी सूर्य, निरेशेश यानी धातु के स्वामी शुक्र तथा फलेश यानी फलों और सब्ज़ियों के स्वामी चन्द्र हैं | इन सभी की अपनी अपनी व्याख्याएँ हैं जो इस लेख का विषय नहीं हैं | हम बात कर रहे हैं नवरात्र में कलश स्थापना की |
भारतीय वैदिक परम्परा के अनुसार किसी भी धार्मिक अनुष्ठान को करते समय सर्वप्रथम कलश स्थापित करके वरुण देवता का आह्वाहन किया जाता है | आश्विन और चैत्र माह की शुक्ल प्रतिपदा को घट स्थापना के साथ माँ दुर्गा की पूजा अर्चना आरम्भ हो जाती है | घट स्थापना के मुहूर्त पर विचार करते समय कुछ विशेष बातों पर ध्यान रखना आवश्यक होता है | सर्वप्रथम तो अमा युक्त प्रतिपदा – अर्थात सूर्योदय के समय यदि कुछ पलों के लिए भी अमावस्या तिथि हो तो उस प्रतिपदा में घट स्थापना शुभ नहीं मानी जाती | इसी प्रकार चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग में घट स्थापना अशुभ मानी जाती है | माना जाता है कि चित्रा नक्षत्र में यदि घट स्थापना की जाए तो धन नाश और वैधृति योग में हो तो सन्तान के लिए अशुभ हो सकता है | साथ ही देवी का आह्वाहन, स्थापन, नित्य प्रति की पूजा अर्चना तथा विसर्जन आदि समस्त कार्य प्रातःकाल में ही शुभ माने जाते हैं | किन्तु यदि प्रतिपदा को सारे दिन ही चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग रहें या प्रतिपदा तिथि कुछ ही समय के लिए हो तो आरम्भ के तीन अंश त्याग कर चतुर्थ अंश में घट स्थापना का कार्य आरम्भ कर देना चाहिए |
इस वर्ष यों तो प्रतिपदा तिथि का आरम्भ बारह अप्रैल को प्रातः आठ बजे के लगभग हो जाएगा जो तेरह अप्रैल को प्रातः सवा दस बजे तक रहेगी | किन्तु, प्रथमतः बारह अप्रैल को उदया तिथि नहीं है और साथ ही वैधृति योग भी बारह अप्रैल को दिन में लगभग ढाई बजे तक रहेगा | अतः घट स्थापना तेरह अप्रैल को ही की जाएगी | इस दिन सूर्योदय प्रातः 5:57 पर होगा और सूर्योदय के समय मीन लग्न में भगवान भास्कर होंगे, अश्विनी नक्षत्र, बव करण तथा विषकुम्भ योग होगा | साथ ही लग्न में बुधादित्य योग भी बन रहा है और द्विस्वभाव लग्न है जो घट स्थापना के लिए अत्युत्तम मानी जाती है | अतः प्रातः 5:57 से सवा दस बजे तक घट स्थापना का शुभ मुहूर्त है | जो लोग इस अवधि में घट स्थापना नहीं कर पाएँगे वे 11:56 से 12:47 तक अभिजित मुहूर्त में घट स्थापना कर सकते हैं |
घट स्थापना करते समय जो मन्त्र बोले जाते हैं उनका संक्षेप में अभिप्राय यही है कि घट में समस्त ज्ञान विज्ञान का, समस्त ऐश्वर्य का तथा समस्त ब्रह्माण्डों का समन्वित स्वरूप विद्यमान है | जैसे:
कलशस्य मुखे विष्णुः, कण्ठे रुद्रो समाहिताः |
मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा, मध्ये मातृगणा: स्मृता: ||
कुक्षौ तु सागरा: सर्वे, सप्तद्वीपा वसुन्धरा |
ऋग्वेदोSथ यजुर्वेदः सामवेदो ही अथर्वण: ||
अंगैश्च सहिताः सर्वे कलशं तु समाश्रिता: |
अत्र गायत्री सावित्री शान्ति: पुष्टिकरी तथा ||
सर्वे समुद्रा: सरित: जलदा नदा:, आयान्तु देवपूजार्थं दुरितक्षयकारका: |
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती,
नर्मदे सिन्धु कावेरी जलेSस्मिन् सन्निधिं कुरुम् ||
अर्थात कलश के मुख में विष्णु, कण्ठ में रूद्र, मूल में ब्रह्मा तथा मध्य में समस्त षोडश मातृकाएँ स्थित हैं | कुक्षि में समस्त सागर, सप्तद्वीपों वाली वसुन्धरा स्थित है | साथ ही सारे वेद वेदांग भी कलश में ही समाहित हैं | सारी शक्तियाँ कलश में समाहित हैं | समस्त पापों का नाश करने के लिए जल के समस्त स्रोत इस कलश में निवास करें |
इस प्रकार घट में समस्त ज्ञान विज्ञान का, समस्त ऐश्वर्य का तथा समस्त ब्रह्माण्डों का समन्वित स्वरूप विद्यमान माना जाता है | किसी भी अनुष्ठान के समय ब्रह्माण्ड में उपस्थित शक्तियों का आह्वाहन करके उन्हें जागृत किया जाता है ताकि साधक को अपनी साधना में सिद्धि प्राप्त हो और उसकी मनोकामनाएँ पूर्ण हों | साथ ही घट स्वयं में पूर्ण है | सागर का जल घट में डालें या घट को सागर में डालें – हर स्थिति में वह पूर्ण ही होता है तथा ईशोपनिषद की पूर्णता की धारणा का अनुमोदन करता प्रतीत होता है “पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते” | इसी भावना को जीवित रखने के लिए किसी भी धार्मिक अनुष्ठान के समय घट स्थापना का विधान सम्भवतः रहा होगा |
नवरात्रों में भी इसी प्रकार घट स्थापना का विधान है | घट स्थापना के समय एक पात्र में जौ की खेती का भी विधान है | अपने परिवार की परम्परा के अनुसार कुछ लोग मिट्टी के पात्र में जौ बोते हैं तो कुछ लोग – जिनके घरों में कच्ची ज़मीन उपलब्ध है – ज़मीन में भी जौ की खेती करते हैं | किन्हीं परिवारों में केवल आश्विन नवरात्रों में जौ बोए जाते हैं तो कहीं कहीं आश्विन और चैत्र दोनों नवरात्रों में जौ बोने की प्रथा है | इन नौ दिनों में जौ बढ़ जाते हैं और उनमें से अँकुर फूट कर उनके नौरते बन जाते हैं जिनके द्वारा विसर्जन के दिन देवी की पूजा की जाती है | कुछ क्षेत्रों में बहनें अपने भाइयों के कानों में और पुरोहित यजमानों के कानों में आशीर्वाद स्वरूप नौरते रखते हैं | इसके अतिरिक्त कुछ जगहों पर शस्त्र पूजा करने वाले अपने शस्त्रों का पूजन भी नौरतों से करते है | कुछ संगीत के क्षेत्र से सम्बन्ध रखने वाले कलाकार अपने वाद्य यन्त्रों की तथा अध्ययन अध्यापन के क्षेत्र से सम्बद्ध लोग अपने शास्त्रों की पूजा भी इन नौरतों से करते हैं |
वास्तव में नवरात्रों में जौ बोना आशा, सुख समृद्धि तथा देवी की कृपा का प्रतीक माना जाता है | ऐसी भी मान्यता है कि सृष्टि के आरम्भ में सबसे पहली फसल जो उपलब्ध हुई वह जौ की फसल थी | इसीलिए इसे पूर्ण फसल भी कहा जाता है | यज्ञ आदि के समय देवी देवताओं को जौ अर्पित किये जाते हैं | एक कारण यह भी प्रतीत होता है कि अन्न को ब्रह्म कहा गया है – अन्नं ब्रह्म इत्युपासीत् (मनु स्मृति) – अर्थात अन्न को ब्रह्म मानकर उसकी उपासना करनी चाहिए, तथा अन्नं ब्रह्मा रसो विष्णुर्भोक्ता देवो माहेश्वर: (ब्रह्म वैवर्त पुराण, ब्रह्म खण्ड) अन्न ब्रह्मा है – रस विष्णु – तथा उन्हें भोग करने वाला माहेश्वर के समान होता है | इस प्रकार की उक्तियों का अभिप्राय यही है कि जिस अन्न और जल में ईश्वर का रूप दीख पड़ता है उसका भला कोई अपमान कैसे कर सकता है ? अतः उस अन्न रूपी ब्रह्म का सम्मान करने के उद्देश्य से भी सम्भवतः इस परम्परा का आरम्भ हो सकता है | आज न जाने कितने लोग ऐसे हैं जिन्हें दो समय भोजन भी भरपेट नहीं मिल पाता | और दूसरी ओर कुछ ऐसे लोग भी हैं जो अपनी प्लेट में इतना भोजन रख लेते हैं कि उनसे खाए नहीं बन पाता और वो भोजन कूड़े के डिब्बे में फेंक दिया जाता है | यदि हम अन्न रूपी ब्रह्म का सम्मान करना सीख जाएँ तो इस प्रकार भोजन फेंकने की नौबत न आए और बहुत से भूखे व्यक्तियों को भोजन उपलब्ध हो जाए | जौ बोने की परम्परा को यदि हम इस रूप में देखें तो सोचिये प्राणिमात्र का कितना भला हो जाएगा |
अस्तु! इन नवरात्रों में हम अन्न ब्रह्म का सम्मान करने की भावना से जौ की खेती अपने घरों में स्थापित करें… हमारी भावनाएँ उदात्त होंगी तो खेती भी फलेगी फूलेगी और कोई व्यक्ति रात को भूखा नहीं सो सकेगा… साथ ही जल का सम्मान करने की भावना से घट स्थापित करें…
“आनन्द” नाम के सम्वत्सर में कामना करते हैं कि यह वर्ष अपने नाम के अनुरूप ही समस्त रोग शोक का हरण करके सबको आनन्द और स्वास्थ्य प्रदान करे…
रोगानशेषानपहांसि तुष्टा, रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् |
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ||
माँ भगवती प्रसन्न होने पर समस्त रोगों का नाश कर देती हैं और कुपित होने पर सभी मनोवाँछित कामनाओं को नष्ट कर देती हैं | किन्तु जो लोग देवी की शरण में आते हैं उन पर स्वयं पर तो विपत्ति आती ही नहीं, अपने साथ आने वाले अन्य प्राणियों को भी विपत्ति से रक्षा करते हैं | अस्तु ! इन नवरात्रों में हम अन्न ब्रह्म का सम्मान करने की भावना से जौ की खेती अपने घरों में स्थापित करें… हमारी भावनाएँ उदात्त होंगी तो खेती भी फलेगी फूलेगी और कोई व्यक्ति रात को भूखा नहीं सो सकेगा… साथ ही जल का सम्मान करने की भावना से घट स्थापित करें… इसी कामना के साथ मंगलवार 13 अप्रैल चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से आरम्भ हो रहे नवरात्र पर्व की सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ… माँ भवानी सभी का मंगल करें…
___________________कात्यायनी…