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bookmark_borderमेरी सहेली और गुरु गौरैया

मेरी सहेली और गुरु गौरैया

Gunjan Khandelwal
Gunjan Khandelwal

(On World Sparrow Day)

गुँजन खण्डेलवाल

चींचीं का शोर बहुत सवेरे मुझे उठा देता और गौरैया व उसकी सखियाँ मेरे छोटे से बगीचे में फुदकने लगतीं | इधर वो दाने, कीड़े आदि चुनकर सफाई करतीं की मैं घर बुहार लेती | उसमें  और मेरी माँ में मुझे समानता लगती | कभी ना थकती कभी ना रूकती की तर्ज़ पर माँ के काम चलते जाते और ये गौरैया भी दाना पानी की जुगत में लगी रहती | सामने की झाड़ी में उसे चोंच में भर कभी तिनके, सींक और रूई लेकर जाते देख लगा कि घोंसला बना रही है | जैसे माँ स्वेटर बुनती लगभग वैसे ही गौरैया ने अपना घोंसला तैयार कर लिया | कुछ दिन बाद मुझे उसमें गोल, सफेद अंडे दिखाई दिए | अब मेरी सखी गौरैया का स्वभाव बदल रहा था | ज़्यादातर वह अपने घोंसले में चौकन्नी रहती अपनी गर्दन घुमाती रहती | उस दिन तो उसने शोर मचाकर और पंख फड़फड़ा कर दुश्मन पंछी को भगा कर ही दम लिया | कुछ दिन बाद मुझे पंख विहीन, मरियल चूज़े दिखाई दिए |

गौरैया की व्यस्तता बढ़ती जा रही थी | आसपास की बड़ी इमारतों और सड़कों के कारण उसे दाना चुगने दूर जाना पड़ता था | उससे मेरी घनिष्ठता इस तरह बढ़ी की अब मैं कुछ गेहूं – चावल के दाने और एक सकोरे में पानी रोज छत पर रखने लगी | मुझे देखकर अब वो एक दम उड़ती नहीं थी वरन  पास पड़े दाने चुनते रहती | गौरैया को देख उसके बच्चे चोंच खोल देते और वो उसमें दाना डाल देती | समय अपनी गति से चल रहा था | उस दिन गौरैया घोंसले में नहीं थी | पता नहीं कैसे उसका एक बच्चा नीचे गिर पड़ा | इस से पहले बिल्ली उसको झपट लेती मैंने उसे सुरक्षित घोंसले में पहुंचा दिया | देर शाम तक गौरैया चींचीं करती मेरे घर के चक्कर काटती रही | अब किसी भी माँ की तरह वो भी अपने बच्चों को दुनिया दारी के लिए तैयार कर रही थी | बच्चे थोड़ी उड़ान भरने लगे थे | वो बड़ी  भयावह शाम थी | गर्मी में बरामदे का पंखा  तेजी से घूम रहा था | गौरैया का एक बच्चा पता नहीं कब उस ओर उड़ते हुए आया और एक पल में पंखे से टकरा कर गिर गया | उस रात मेरे आंसू और गौरैया की चीं चीं वाली चीख़ आपस में घुल मिल गईं |

समय ने गति पकड़ ली थी | मेरे बच्चे दूसरे शहरों में पढ़ने चले गए | मेरी उदासी गहरा रही थी | उस दिन मैंने देखा गौरैया के बच्चे पेड़ों के एकाध चक्कर लगा कर उड़ गए | कभी ना वापस आने के लिए | मैं निराश हो गई | पर ये क्या?गौरैया अगली सभी सुबह खुशी खुशी चहकती आ धमकती और पुरानी दिनचर्या में व्यस्त हो गई | उसके चहचहाने से मुझे सीख मिल गई कि बच्चों को अपना भविष्य बनाने जाना ही है इसलिए उसमें बाधा न बनो और गौरैया की तरह अपेक्षा न रखते हुए अपने कर्तव्य पूर्ण खुशी खुशी करते रहो | मेरी सहेली गौरैया ने मुझे एक साथ यानि समाज से जुड़ने का संदेश दिया | आत्म निर्भरता, आत्म रक्षा और पर्यावरण संरक्षण जैसे सबक भी जाने अनजाने सिखा दिए | अब  मैं उसे सहेली के साथ गुरु भी मानने लगी हूँ |