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bookmark_borderसूर्य ग्रहण

सूर्य ग्रहण

रविवार आषाढ़ कृष्ण अमावस्या को प्रातः दस बजकर बीस मिनट के लगभग सूर्य ग्रहण का आरम्भ होगा जो भारत के कुछ भागों में कंकणाकृति अर्थात वलयाकार दिखाई

Dr. Purnima Sharma
Dr. Purnima Sharma

देगा तथा कुछ भागों में आंशिक रूप से दिखाई देगा और दिन में 1:49 के लगभग समाप्त हो जाएगा | बारह बजकर दो मिनट के लगभग ग्रहण का मध्यकाल होगा | ग्रहण की कुल अवधि 3 घंटे 28 मिनट 36 सेकेंड्स की है | ग्रहण का सूतक शनिवार 20 जून को रात्रि नौ बजकर बावन मिनट से आरम्भ होगा | किन्तु जो लोग बीमार हैं उनके लिए, बच्चों के लिए तथा गर्भवती महिलाओं के लिए 21 जून की प्रातः पाँच बजकर चौबीस मिनट यानी सूर्योदय काल से सूतक का आरम्भ माना जाएगा | यह ग्रहण मिथुन राशि पर है जहाँ सूर्य, चन्द्र और राहु के साथ बुध भी गोचर कर रहा है | सूर्य, चन्द्र और राहु मृगशिर नक्षत्र में हैं | साथ ही इस दिन से भगवान भास्कर दक्षिण दिशा की ओर प्रस्थान आरम्भ कर देते हैं और दिन की अवधि धीरे धीरे कम होनी आरम्भ हो जाती है, इसीलिए इस दिन को ग्रीष्मकालीन सबसे बड़ा दिन भी माना जाता है | किन्तु ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार कर्क संक्रान्ति को सूर्यदेव का दक्षिण दिशा में प्रस्थान आरम्भ होता है जिसे निरयण दक्षिणायन कहा जाता है – जो 16 जुलाई को होगी |

ग्रहण के विषय में हम पूर्व में भी बहुत कुछ लिख चुके हैं | अतः पौराणिक कथाओं के विस्तार में नहीं जाएँगे | हमारे ज्योतिषियों की मान्यता है कि ग्रहण की अवधि में उपवास रखना चाहिए, बालों में कंघी आदि नहीं करनी चाहिए, गर्भवती महिलाओं को न तो बाहर निकलना चाहिए, न ही चाकू कैंची आदि से सम्बन्धित कोई कार्य करना चाहिए, अन्यथा गर्भस्थ शिशु पर ग्रहण का बुरा प्रभाव पड़ता है (यद्यपि इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है) तथा ग्रहण समाप्ति पर स्नानादि से निवृत्त होकर दानादि कर्म करने चाहियें | साथ ही जिन राशियों के लिए ग्रहण का अशुभ प्रभाव हो उन्हें विशेष रूप से ग्रहण शान्ति के उपाय करने चाहियें | इसके अतिरिक्त ऐसा भी माना जाता है कि पितृ दोष निवारण के लिए, मन्त्र सिद्धि के लिए तथा धार्मिक अनुष्ठानों के लिए ग्रहण की अवधि बहुत उत्तम होती है |

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि ये सब खगोलीय घटनाएँ हैं और खगोल वैज्ञानिकों की खोज के विषय हैं क्योंकि ग्रहण के आध्यात्मिक महत्त्व के साथ ही संसार भर के वैज्ञानिकों के लिए यह अवसर किसी उत्सव से कम नहीं होता जब वे सौर मण्डल में हो रहे परिवर्तनों का अध्ययन करते हैं | तो इस विषय पर हम नहीं जाएँगे | क्योंकि विज्ञान और आस्था में भेद होता है | हम यहाँ बात करते हैं हिन्दू धार्मिक मान्यताओं और आस्थाओं की | भारतीय हिन्दू मान्यताओं तथा भविष्य पुराण, नारद पुराण आदि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य और चन्द्र ग्रहण अत्यन्त अद्भुत ज्योतिषीय घटनाएँ हैं जिनका समूची प्रकृति पर तथा जन जीवन पर प्रभाव पड़ता है |

यदि व्यावहारिक रूप से देखें तो इसे इस प्रकार समझना चाहिए कि जिस प्रकार वर्षाकाल में जब सूर्य को मेघों का समूह ढक लेता है उस समय प्रायः बहुत से लोगों की भूख प्यास कम हो जाती है, पाचन क्रिया भी दुर्बल हो जाती है, शरीर में आलस्य की सी स्थिति हो जाती है | इसका कारण है कि सूर्य समस्त चराचर जगत की आत्मा है – परम ऊर्जा और चेतना का स्रोत है | बादलों से ढका होने के कारण सूर्य से प्राप्त वह ऊर्जा एवं चेतना जीवों तक नहीं पहुँच पाती और उनमें इस प्रकार के परिवर्तन आरम्भ हो जाते हैं | इसी प्रकार यद्यपि चाँद घटता बढ़ता रहता हैं, किन्तु जब बादलों के कारण आकाश में चन्द्रमा के दर्शन नहीं होते तब भी समूची प्रकृति पर भावनात्मक प्रभाव पड़ना आरम्भ हो जाता है | ग्रहण में भी यह स्थिति होती है |

सूर्य और चन्द्रमा के मध्य जब पृथिवी आ जाती है और चन्द्रमा पर पृथिवी की छाया पड़ने लगती है तो उसे चन्द्र ग्रहण कहा जाता है, और जब सूर्य तथा पृथिवी के मध्य चन्द्रमा आ जाता है तो सूर्य का बिम्ब चन्द्रमा के पीछे कुछ समय के लिए ढक जाता है – इसे सूर्य ग्रहण कहा जाता है | चन्द्र ग्रहण के समय चन्द्रमा की शीतल किरणें प्राणियों तक नहीं पहुँच पातीं | ज्योतिषीय सिद्धान्तों के अनुसार चन्द्रमा को मन का कारक माना गया है | अतः चन्द्रग्रहण का मन की स्थिति पर व्यापक प्रभाव माना जाता है | तथा सूर्य ग्रहण के समय सूर्य की किरणें पूर्णतः स्वच्छ रूप में प्राणियों तक नहीं पहुँच पातीं | जिसका मनुष्यों के पाचन क्षमता, उनकी कार्य क्षमता आदि पर व्यापक प्रभाव माना जाता है | यही कारण है ग्रहण की स्थिति में कुछ भी भोजन आदि तथा अन्य कार्यों के लिए मना किया जाता है | क्योंकि न तो इस अवधि में किया गया भोजन पचाने में हमारी पाचन प्रणाली सक्षम होती है और न ही इस अवधि में उतनी अधिक कुशलता से कोई कार्य सम्भव हो पाता है | आपने देखा भी होगा कि जब पूर्ण सूर्य ग्रहण होता है – जब दिन में रात्रि के जैसा अन्धकार छा जाता है – तो मनुष्यों पर ही इसका प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि सारी प्रकृति को रात का अनुभव होने लगता है और समूची प्रकृति मानो निद्रा देवी की गोद में समा जाती है – सारे पशु पक्षी तक अपने अपने घोसलों और दूसरे निवासों में छिप जाते हैं – क्योंकि उन्हें लगता है कि अब रात हो गई है और हमें सो जाना चाहिए | जब सारी प्रकृति ही ग्रहण के प्रति इतनी सम्वेदनशील है तो फिर मनुष्य तो स्वभावतः ही सम्वेदनशील होता है |

ज्योतिषीय दृष्टि से मिथुन राशि पर पड़ रहा यह सूर्य ग्रहण मिथुन राशि के लिए तो अनुकूल है ही नहीं – उन्हें अपने स्वास्थ्य के साथ साथ अपनी भावनाओं पर नियन्त्रण रखने की आवश्यकता है तथा भाई बहनों के साथ व्यर्थ के विवाद से बचने की भी आवश्यकता है, क्योंकि सूर्य उनका तृतीयेश है | साथ ही कर्क राशि के लिए सूर्य द्वितीयेश होकर धन तथा वाणी का कारक है और उनकी राशि से बारहवें भाव में होने के कारण इस राशि के जातकों के लिए भी इस ग्रहण को अच्छा नहीं कहा जाएगा – उन्हें अपने स्वास्थ्य तथा दुर्घटना और व्यर्थ की धनहानि के प्रति सावधान रहने की आवश्यकता होगी | वृश्चिक राशि के जातकों के लिए सूर्य दशमेश है तथा ग्रहण उनके अष्टम भाव में आ रहा है अतः उन्हें भी विशेष रूप से अपने स्वास्थ्य तथा कार्य स्थल पर गुप्त शत्रुओं की ओर से सावधान रहने की आवश्यकता होगी | मीन राशि के जातकों के लिए सूर्य षष्ठेश है और इस समय उनके चतुर्थ भाव – परिवार तथा अन्य प्रकार की सुख सुविधाओं का भाव – में गोचर कर रहा है – उनके लिए भी इसे शुभ नहीं कहा जा सकता – पारिवारिक क्लेश न होने पाए इसका प्रयास करते रहने की आवश्यकता होगी |

किन्तु साथ ही हमारा अपना यह भी मानना है कि ग्रहण जैसी आकर्षक खगोलीय घटना से भयभीत होने की अपेक्षा इसके सौन्दर्य को निहार कर प्रकृति के इस सौन्दर्य की सराहना करने की आवश्यकता है… क्योंकि इन सब बातों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है, केवल जन साधारण की अपनी मान्यताओं, निष्ठाओं तथा आस्थाओं पर निर्भर करता है…

बहरहाल, मान्यताएँ और निष्ठाएँ, आस्थाएँ जिस प्रकार की भी हों और विज्ञान के साथ उनका सम्बन्ध स्थापित हो या नहीं, हमारी तो यही कामना है कि सब लोग स्वस्थ तथा सुखी रहें, दीर्घायु हों ताकि भविष्य में भी इस प्रकार की भव्य खगोलीय घटनाओं के साक्षी बन सकें… डॉ पूर्णिमा शर्मा…

 

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मानसिक शान्ति

मानसिक शान्ति – जिसकी आजकल हर किसी को आवश्यकता है – चाहे वह किसी भी व्यवसाय से जुड़ा हो, गृहस्थ हो, सन्यासी हो – विद्यार्थी हो – कोई भी हो – हर किसी

Dr. Purnima Sharma
Dr. Purnima Sharma

का मन किसी न किसी कारण से अशान्त रहता है | और हम अपनी मानसिक अशान्ति का दोष अपनी परिस्थितियों तथा अपने आस पास के व्यक्तियों पर – समाज पर – मढ़ देते हैं | कितना भी ब्रह्म मुहूर्त में प्राणायाम, योग और ध्यान का अभ्यास कर लिया जाए, कितना भी चक्रों को जागृत कर लिया जाए – मन की अशान्ति, क्रोध, चिड़चिड़ापन और कई बार उदासी यानी डिप्रेशन भी – जाता ही नहीं | किन्तु समस्या यह है कि जब तक व्यक्ति का मन शान्त नहीं होगा तब तक वह अपने कर्तव्य कर्म भी सुचारु रूप से नहीं कर पाएगा, क्योंकि मन एक स्थान पर – एक लक्ष्य पर स्थिर ही नहीं रह पाएगा | हमने ऐसे लोग देखें हैं जो नियमित ध्यान का अभ्यास करते हैं, प्राणायाम, ध्यान और योग सिखाते भी हैं – लेकिन उनके भीतर का क्रोध, घृणा, लालच, दूसरों को नीचा दिखाने की उनकी प्रवृत्ति में कहीं किसी प्रकार की कमी नहीं दिखाई देती |

अस्तु, मन को शान्त करने के क्रम में सबसे पहला अभ्यास है मन को – अपने ध्यान को – उन बातों से हटाना जिनके कारण व्यवधान उत्पन्न होते हैं या मन के घोड़े इधर उधर भागते हैं | जब तक इस प्रकार की बातें मन में रहेंगी – मन का शान्त और स्थिर होना कठिन ही नहीं असम्भव भी है | इसीलिए पतंजलि ने मनःप्रसादन की व्याख्या दी है |

महर्षि पतंजलि ने ऐसे कुछ भावों के विषय में बताया है जो इस प्रकार की बाधाओं को दूर करने में सहायक होते हैं | ये हैं – मित्रता, करुणा या संवेदना और धैर्य तथा समभाव | निश्चित रूप से यदि मनुष्य इन प्रवृत्तियों को अपने दिन प्रतिदिन के व्यवहार में अपना लेता है तो नकारात्मक विचार मन में आने ही नहीं पाएँगे | किसी भी व्यक्ति के किसी विषय में व्यक्तिगत विचार हो सकते हैं | यदि उसके उन विचारों से किसी को कोई हानि नहीं पहुँच रही है तो हमें इसकी आलोचना करने का या उसे टोकने का कोई अधिकार नहीं | ऐसा करके हम अपना मन ही अशान्त नहीं करते, वरन अपनी साधना के मार्ग में व्यवधान उत्पन्न करके लक्ष्य से बहुत दूर होते चले जाते हैं |

अतः जब भी और जहाँ भी कुछ अच्छा – कुछ आनन्ददायक – कुछ सकारात्मक ऊर्जा से युक्त दीख पड़े – हमें सहज आनन्द के भाव से उसकी सराहना करनी चाहिए और यदि सम्भव हो तो उसे आत्मसात करने का प्रयास भी करना चाहिए, ताकि हमारे मन में वह आनन्द का अनुभव दीर्घ समय तक बना रहे – न कि अपनी व्यक्तिगत ईर्ष्या, दम्भ, अहंकार आदि के कारण उस आनन्ददायक क्षण से विरत होकर उदासी अथवा क्रोध की चादर ओढ़कर एक ओर बैठ जाया जाए | ऐसा करके आप न केवल उस आनन्द के क्षण को व्यर्थ गँवा देंगे, बल्कि चिन्ताग्रस्त होकर अपनी समस्त सम्भावनाओं को भी नष्ट कर देंगे | आनन्द के क्षणों में कुछ इतर मत सोचिए – बस उन कुछ पलों को जी लीजिये | इसी प्रकार जब कभी कोई प्राणी कष्ट में दीख पड़े हमें उसके प्रति दया, करुणा, सहानुभूति और अपनापन दिखाने में तनिक देर नहीं करनी चाहिए | आगे बढ़कर स्नेहपूर्वक उसे भावनात्मक अवलम्ब प्रदान चाहिए |

इस प्रकार चित्त प्रसादन के उपायों का पालन करके कोई भी व्यक्ति मानसिक स्तर पर एकाग्र तथा प्रसन्न अवस्था में रह सकता है | यदि हमारा व्यवहार ऐसा होगा – यदि इन दोनों बातों का अभ्यास हम अपने नित्य प्रति के जीवन में करेंगे – तो हमारा चित्त प्रसन्न रहेगा – और विश्वास कीजिये – इससे बड़ा ध्यान का अभ्यास कुछ और नहीं हो सकता | इस अभ्यास को यदि हम दोहराते रहते हैं तो कोई भी विषम परिस्थिति हमारा चित्त अशान्त नहीं कर पाएगी – किसी भी प्रकार का नकारात्मक विचार हमारे मन में नहीं उत्पन्न होने पाएगा और हमारा मन आनन्दमिश्रित शान्ति का अनुभव करेगा… डॉ पूर्णिमा शर्मा